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बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर आधार की मान्यता पर सवाल

बिहार में चल रहे मतदाता सूची के पुनरीक्षण अभियान के दौरान आधार की मान्यता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। चुनाव आयोग ने आधार को मतदाता सत्यापन के दस्तावेज के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया है, जबकि अन्य राज्यों में यह मान्य है। इस भेदभाव को समाप्त करने के लिए चुनाव आयोग को बिहार के नागरिकों के लिए समानता सुनिश्चित करनी चाहिए। क्या बिहार के लोग चुनावी प्रक्रिया से वंचित रहेंगे? जानें इस मुद्दे पर विस्तृत जानकारी।
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बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर आधार की मान्यता पर सवाल

आधार की मान्यता पर उठते सवाल

क्या भारत सरकार और चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं का आधार से मोहभंग हो रहा है? यह सवाल बिहार में चल रहे मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण अभियान से उठता है। बिहार में लगभग आठ करोड़ मतदाताओं का गहन पुनरीक्षण किया जा रहा है, जिसमें सभी मतदाताओं को फिर से अपने नाम दर्ज कराने के लिए कहा गया है। राज्य चुनाव आयोग ने छह हजार रुपये पर नियुक्त बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) को घर-घर जाकर फॉर्म पहुंचाने का कार्य सौंपा है। इसके बाद, भरे हुए फॉर्म, फोटो और जन्म प्रमाण पत्र एकत्र किए जाएंगे। चुनाव आयोग ने जन्म प्रमाण पत्र के रूप में आधार को मान्यता देने से इनकार कर दिया है। बिहार में कोई भी व्यक्ति आधार, मनरेगा कार्ड या राशन कार्ड के आधार पर मतदाता नहीं बन सकता।


क्या अन्य राज्यों में भी यही स्थिति है?

क्या दिल्ली या अन्य राज्यों में आधार कार्ड के माध्यम से मतदाता सूची में नाम दर्ज नहीं कराया जा सकता? यदि दिल्ली या देश के अन्य हिस्सों में कोई व्यक्ति आधार के जरिए मतदाता बन सकता है, तो बिहार में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? क्या बिहार के 14 करोड़ नागरिकों को चुनाव आयोग ने अलग-थलग कर दिया है, जिन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए आधार से अलग दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे? यह सोचने का विषय है। एक ओर, चुनाव आयोग पूरे देश में वोटर आई कार्ड को आधार से जोड़ने की मुहिम चला रहा है, जिसमें 40 करोड़ से अधिक लोग अपना वोटर आई कार्ड आधार से जोड़ चुके हैं।


बिहार के नागरिकों के लिए समानता की आवश्यकता

बिहार के नागरिकों के साथ हो रहे इस भेदभाव को समाप्त करने का एकमात्र तरीका यह है कि चुनाव आयोग या तो बिहार के लोगों के आधार को भी मतदाता सूची के सत्यापन के दस्तावेज के रूप में मान्यता दे या फिर देशभर में आधार की आवश्यकता को समाप्त करे। यह असंभव है कि देश के अन्य हिस्सों में लोग आधार के माध्यम से मतदाता बन सकें, लेकिन बिहार में ऐसा न हो। इसके साथ ही, चुनाव आयोग को मतदाता सूची को आधार कार्ड के साथ लिंक करने के अभियान को तुरंत रोकना चाहिए और देशभर के लिए आवश्यक दस्तावेजों की नई सूची जारी करनी चाहिए।