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बिहार में मतदाताओं की संख्या में गिरावट: चुनावी चिंताएं बढ़ीं

बिहार में इस बार मतदाताओं की संख्या में गिरावट देखी जा रही है, जो कि 2005 के बाद पहली बार हो रहा है। निर्वाचन आयोग के अनुसार, स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के तहत अब तक 72.4 मिलियन फॉर्म इकट्ठा हुए हैं, जो पिछले चुनावों की तुलना में कम हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह गिरावट मतदाता सूची के सत्यापन का परिणाम हो सकती है। चुनाव आयोग द्वारा अंतिम सूची 30 सितंबर 2025 को जारी की जाएगी, और यदि तब तक स्थिति में सुधार नहीं होता है, तो यह बिहार के चुनावी इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाएगी।
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बिहार में मतदाताओं की संख्या में गिरावट: चुनावी चिंताएं बढ़ीं

बिहार में मतदाता संख्या में कमी

बिहार में इस बार मतदाताओं की संख्या में कमी देखी जा रही है, जो कि 2005 के बाद पहली बार हो रहा है। निर्वाचन आयोग के अनुसार, राज्य में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के तहत अब तक लगभग 72.4 मिलियन (7 करोड़ 24 लाख) फॉर्म एकत्रित किए गए हैं। यह आंकड़ा पिछले चुनावों की तुलना में काफी कम है, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या में कमी आ सकती है।


मतदाता संख्या में गिरावट के चौंकाने वाले आंकड़े

24 जून 2025 तक बिहार में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या की तुलना में यह आंकड़ा 6.5 मिलियन (8%) कम है। इसके अलावा, 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में दर्ज मतदाताओं की तुलना में यह 4.8 मिलियन (6.2%) और 2020 में हुए राज्य विधानसभा चुनाव के मुकाबले 1.2 मिलियन (1.6%) कम है। चुनाव आयोग के ताजा आंकड़े यह दर्शाते हैं कि राज्य में मतदाता सूची में असामान्य गिरावट हो रही है।


क्या यह पहली बार हो रहा है?

बिहार में 2004 के बाद से यह पहला अवसर होगा जब मतदाताओं की संख्या में कमी देखी गई है। हालांकि, 2005 के फरवरी और अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनावों के बीच मतदाताओं की संख्या 52.7 मिलियन से घटकर 51.3 मिलियन रह गई थी, जो कि 2.5% की कमी थी। उस समय भी राज्य में SIR के बाद ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई थी।


2003 के SIR के बाद भी हुआ था ऐसा

यह पहली बार नहीं है जब SIR के बाद मतदाता सूची में गिरावट देखी गई हो। 2003 के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के बाद 2005 में भी मतदाताओं की संख्या में कमी आई थी। उस समय बिहार में उच्च प्रजनन दर के चलते 2001 से 2011 के बीच वयस्क आबादी में 28.5% की वृद्धि हुई थी। इसके बावजूद मतदाता संख्या में कमी इस ओर इशारा करती है कि राज्य से बड़ी मात्रा में पलायन एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है।


क्या यह स्थिति स्थायी है?

निर्वाचन आयोग ने बताया है कि 1 अगस्त से 1 सितंबर तक का समय दावे और आपत्तियों के लिए निर्धारित किया गया है। इस दौरान जिन लोगों के नाम सूची से छूट गए हैं, वे फिर से अपना नाम जुड़वाने का आवेदन दे सकते हैं। इसका मतलब है कि इस गिरावट को आंशिक रूप से सुधारा जा सकता है।


विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का मानना है कि यह गिरावट मतदाता सूची के सत्यापन और सफाई अभियान का परिणाम हो सकती है, जिसमें डुप्लीकेट, मृत और स्थानांतरित मतदाताओं को सूची से हटाया गया है। इसके अलावा, बड़ी संख्या में युवा अब भी मतदाता सूची में नाम नहीं जुड़वा पाए हैं या बाहर जाकर बसे हैं।


अंतिम सूची का इंतजार

चुनाव आयोग द्वारा अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित की जाएगी। यदि तब तक मतदाताओं की संख्या में कोई बड़ा सुधार नहीं होता, तो यह बिहार के चुनावी इतिहास में एक महत्वपूर्ण और दुर्लभ घटना मानी जाएगी। बिहार जैसे जनसंख्या बहुल राज्य में मतदाताओं की संख्या में गिरावट सामान्य नहीं है। लेकिन सत्यापन प्रक्रिया, पलायन और सामाजिक बदलावों के चलते ऐसा हो रहा है। अब देखना यह है कि दावा-आपत्ति की प्रक्रिया के बाद कितने नए नाम जुड़ते हैं और यह आंकड़ा फिर से ऊपर जाता है या नहीं.