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बिहार में मोदी-शाह की राजनीति: चुनावी रणनीतियों का विश्लेषण

बिहार की राजनीति में मोदी और शाह की रणनीतियों का गहरा प्रभाव है। तेजस्वी यादव और राहुल गांधी जैसे नेता इस परिदृश्य में पीछे रह गए हैं। चुनाव से पहले सरकारी धन का वितरण और महिलाओं के खातों में नकद सहायता ने चुनावी समीकरणों को बदल दिया है। जानें कैसे ये कारक बिहार के चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं।
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बिहार में मोदी-शाह की राजनीति: चुनावी रणनीतियों का विश्लेषण

बिहार की राजनीतिक स्थिति

मेरा मानना है कि बिहार की राजनीति पूरी तरह से मोदी और शाह के नियंत्रण में है। तेजस्वी यादव, राहुल गांधी और प्रशांत किशोर जैसे नेता इस परिदृश्य में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं। विपक्ष की समस्या यह है कि वे यह नहीं समझते कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह सत्ता की भूख में हमेशा सक्रिय रहते हैं। सत्ता में बने रहने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं।


अगर हम इतिहास में जाएं, तो ईस्ट इंडिया कंपनी और वर्तमान मोदी-शाह की राजनीति में समानताएं देखी जा सकती हैं। दोनों ने 'फूट डालो और राज करो' की नीति अपनाई है। ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1757 में पलासी और 1764 में बक्सर की लड़ाई में जीत हासिल की थी, जिसमें बिहार भी शामिल था। क्लाइव की सेना में केवल तीन हजार सैनिक थे, जिनमें से सिर्फ आठ सौ विदेशी थे। लेकिन उन्होंने स्थानीय धन का उपयोग करके मीर जाफर जैसे सहयोगियों को खरीद लिया।


इसलिए, यह स्पष्ट है कि मोदी-शाह की टीम बिहार की राजनीति को नियंत्रित कर रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जनता दल यू पूरी तरह से उनकी रणनीतियों के अनुसार काम कर रहे हैं। मैंने 2017 के उत्तर प्रदेश चुनावों के बाद यह विश्लेषण किया था कि अब चुनावी प्रक्रिया मोदी-शाह की असेंबली लाइन में बदल गई है।


प्रशांत किशोर, जो बिहार की राजनीति को अच्छी तरह समझते हैं, ने कुछ नया करने की कोशिश की है, लेकिन वे भी असफल होते दिख रहे हैं। चुनाव से पहले, जब सरकार ने लोगों को सीधे नकद सहायता पहुंचाई, तो यह एक निर्णायक कदम साबित हुआ। महिलाओं के खातों में दस हजार रुपये की राशि पहुंचाना एक महत्वपूर्ण कारक है।


बिहार में इतनी योजनाओं और बहानों के तहत सरकारी धन का वितरण हो रहा है कि इसका कोई सही हिसाब नहीं लगाया जा सकता। इस स्थिति में ईवीएम की धांधली या चुनाव आयोग की हेराफेरी की आवश्यकता नहीं होगी। चुनाव में पहले से ही धन बांटने के कारण भाजपा और जनता दल यू की जीत सुनिश्चित है।


इसलिए, तेजस्वी यादव, राहुल गांधी और उनके सहयोगी इस चुनाव में धूल में लट्ठ मारते नजर आ रहे हैं। प्रशांत किशोर की पहली उम्मीदवार सूची में जातीय समीकरणों का ध्यान रखा गया है, जो लालू-तेजस्वी और राहुल गांधी की जातिवादी राजनीति को दर्शाता है। कोई भी नेता या पार्टी बिहार की समस्याओं को सही तरीके से नहीं उठा पा रही है।