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बिहार में युवा वोटरों की अनदेखी: क्या बदल सकती है चुनावी तस्वीर?

बिहार में महिला और प्रवासी वोटरों की चर्चा तो होती है, लेकिन युवा मतदाताओं की अनदेखी की जा रही है। चिराग पासवान ने एमवाई समीकरण की बात की, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। बिहार में 1.7 करोड़ युवा हैं, जिनमें से 14 लाख पहली बार वोट डालेंगे। यह संख्या चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकती है, लेकिन राजनीतिक दलों की अनदेखी से इन युवाओं को अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा। क्या बिहार की राजनीतिक तस्वीर बदलने का समय आ गया है?
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बिहार में युवा वोटरों की अनदेखी: क्या बदल सकती है चुनावी तस्वीर?

बिहार में वोटिंग का नया समीकरण

बिहार में महिला और प्रवासी वोटरों की चर्चा अक्सर होती है, साथ ही मुस्लिम और यादव समुदायों के वोटों का भी ध्यान रखा जाता है। अति पिछड़े वर्ग के वोटों की बात भी होती है, और यहां तक कि केवल नौ प्रतिशत आबादी वाले सवर्ण वोटरों की भी चर्चा होती है। लेकिन युवाओं की स्थिति पर कोई ध्यान नहीं देता। हाल ही में चिराग पासवान ने कहा था कि वे एक नए एमवाई समीकरण पर काम कर रहे हैं, जिसमें 'एम' का मतलब महिला और 'वाई' का मतलब युवा है। लेकिन उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया गया, क्योंकि उनके कार्यों में कोई ठोसता नहीं है। बिहार में यह धारणा है कि महिलाओं का मतलब धनपति या बाहुबली की पत्नी या बेटी है, और युवाओं का मतलब किसी नेता या बाहुबली का बेटा है।


बिहार में लगभग साढ़े तीन करोड़ महिलाएं और एक करोड़ 70 लाख युवा हैं। यदि उम्र की सीमा को थोड़ा बढ़ाया जाए, तो यह संख्या और भी बढ़ सकती है। यह एक करोड़ 70 लाख की संख्या 18 से 28 साल के युवाओं की है। ध्यान देने वाली बात यह है कि 'जेन जी' में 13 से 28 साल के युवाओं को शामिल किया जाता है। लेकिन 18 साल से कम उम्र के युवा वोट नहीं डाल सकते हैं, इसलिए 18 से 28 साल वालों की संख्या को ही लिया गया है। इनमें से 14 लाख युवा ऐसे हैं, जो पहली बार वोट डालेंगे। यह आंकड़ा इस तरह से भी देखा जा सकता है कि बिहार की हर विधानसभा सीट पर लगभग 5700 युवा मतदाता हैं, जो पहली बार मतदान करेंगे। पिछले चुनाव में 52 सीटों का परिणाम पांच हजार से कम मतों से तय हुआ था। दुर्भाग्यवश, कोई भी राजनीतिक पार्टी इन युवा मतदाताओं को अलग से पहचान कर उन्हें अपने पक्ष में लाने का प्रयास नहीं कर रही है।