बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले अति पिछड़ा वोट पर सभी पार्टियों की नजर
जातीय समीकरण साधने की कोशिश
विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही सभी राजनीतिक दल जातीय समीकरण को साधने में जुट गए हैं। खासकर अति पिछड़ा वोट, जिसकी जनसंख्या जाति गणना के अनुसार 36 प्रतिशत है, पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। बिहार में पिछड़ी जातियों की कुल आबादी 27 प्रतिशत है, जबकि अति पिछड़ों की संख्या 36 प्रतिशत है। पिछड़ी जातियों में यादवों की संख्या सबसे अधिक 14 प्रतिशत है, जो राजद के साथ हैं। इसके बाद कोईरी, कुर्मी और धानुक का लगभग 10 प्रतिशत का समूह है, जो एनडीए का समर्थन करता है। अति पिछड़ी जातियों की प्राथमिकता भाजपा है, जबकि नीतीश कुमार की जदयू भी उनके लिए एक विकल्प है। राजद को अति पिछड़ा वोट बहुत कम मिलता है, क्योंकि इन जातियों का सामाजिक स्तर पर यादवों के साथ टकराव होता है। इस बार राजद अति पिछड़ा वोट में सेंध लगाने के लिए कई प्रयास कर रहा है.
राजद का नया नेतृत्व
राजद ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए राजपूत समाज के नेता जगदानंद सिंह की जगह अति पिछड़ा समाज के मंगनीलाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया है। मंगनीलाल मंडल हाल ही में राजद में शामिल हुए हैं। इसके अलावा, राजद ने मल्लाह समाज के नेता मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के साथ भी गठबंधन किया है। मुकेश सहनी का कहना है कि मल्लाहों की सभी उपजातियों का मिलाकर साढ़े नौ प्रतिशत वोट है। यह दूसरी बार है जब राजद ने अति पिछड़ा अध्यक्ष नियुक्त किया है। इससे पहले, रामचंद्र पूर्वे कई वर्षों तक राजद के प्रदेश अध्यक्ष रहे, जो भी अति पिछड़ा समाज से थे, लेकिन उनके कार्यकाल में ईबीसी वोट ट्रांसफर नहीं हो पाया। मंगनीलाल मंडल एक प्रमुख नेता हैं और वर्तमान अस्मिता की राजनीति में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है.
