बिहार विधानसभा चुनाव 2025: क्या बढ़ता मतदान संकेत देता है सत्ता परिवर्तन का?
बिहार में मतदान का नया रिकॉर्ड
नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में मतदाताओं ने एक नया उत्साह भरा इतिहास रचा है। इस चरण में 64.66% मतदान हुआ, जो कि 2020 में हुए 56.1% मतदान से लगभग 8.5% अधिक है। इस मतदान प्रतिशत में अभूतपूर्व वृद्धि ने राज्य की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। सत्ताधारी और विपक्ष दोनों इसे अपने लिए सकारात्मक संकेत मान रहे हैं।
मतदाता भागीदारी का आंकड़ा
गुरुवार को 18 जिलों की 121 सीटों पर मतदान संपन्न हुआ। इन सीटों पर लगभग 3.75 करोड़ मतदाता पंजीकृत थे, जिनमें से दो-तिहाई से अधिक ने अपने मत का प्रयोग किया। 2020 के पहले चरण में 71 सीटों पर मतदान हुआ था, जिसमें 3.70 करोड़ मतदाताओं में से 2.06 करोड़ ने वोट डाले थे।
क्या अधिक मतदान का मतलब सत्ता परिवर्तन?
परंपरागत रूप से, अधिक मतदान को एंटी-इंकम्बेंसी का संकेत माना जाता है। हालांकि, यह हमेशा सही नहीं होता, कभी-कभी अधिक मतदान सत्ता के समर्थन को भी दर्शाता है। बिहार के इतिहास पर नजर डालें तो तस्वीर कुछ अलग नजर आती है।
बिहार में मतदान और सत्ता परिवर्तन
1967: मतदान 44.5% से बढ़कर 51.5% हुआ। पहली बार कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई।
1990: मतदान 56.3% से बढ़कर 62% हुआ। कांग्रेस हटकर जनता दल की सरकार बनी।
2005: मतदान में 16% की गिरावट के बावजूद सत्ता परिवर्तन हुआ। नीतीश कुमार पहली बार सत्ता में आए।
अब 2025 में 8.5% की रिकॉर्ड वृद्धि ने चर्चा को फिर तेज कर दिया है कि क्या इस बार भी बदलाव की आहट है।
बिहार की राजनीति का केंद्र
पहले चरण की 121 सीटें मुख्य रूप से गंगा के दक्षिण के क्षेत्रों में हैं। ये क्षेत्र लंबे समय से बिहार की राजनीति को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। इनमें प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं:
- मिथिलांचल
- कोसी
- मुंगेर
- सारण
- भोजपुर
2020 के चुनाव में महागठबंधन ने इन 121 सीटों में से 61 सीटें जीती थीं, जबकि एनडीए को 59 सीटें मिली थीं। दलों की स्थिति भी दिलचस्प रही:
- आरजेडी: 42
- भाजपा: 32
- जदयू: 23
- कांग्रेस: 8
- वाम दल: 11
2025 के चुनावी समीकरण
इस चुनाव में हालात 2020 से बिल्कुल अलग हैं। चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा फिर एनडीए में लौट आए हैं। मुकेश सहनी की वीआईपी, जो पहले एनडीए के साथ थी, अब महागठबंधन में शामिल हो गई है। इन बदलावों से दोनों गठबंधनों की स्थिति और रणनीति पर काफी असर पड़ा है।
क्या यह नीतीश का अंतिम चुनाव?
बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार के बारे में माना जा रहा है कि यह चुनाव उनका अंतिम चुनाव हो सकता है। 'पलटू चाचा' के नाम से चर्चित नीतीश दसवीं बार मुख्यमंत्री बनने की कोशिश में हैं। वहीं, तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद चाहती है कि इस बार एनडीए को रोककर सत्ता में वापसी का रास्ता बनाया जाए।
14 नवंबर को परिणामों का खुलासा
इतिहास कहता है कि बिहार में जब भी मतदान प्रतिशत में बड़ी उछाल आती है, राजनीतिक बदलाव का रास्ता खुलता है। क्या इस बार भी वही होगा? इसका जवाब 14 नवंबर को आने वाले नतीजों में मिलेगा।
