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बिहार विधानसभा चुनाव 2025: तेजस्वी यादव का बड़ा बयान, क्या विपक्ष का बहिष्कार रोक सकता है चुनाव?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के संदर्भ में तेजस्वी यादव ने वोटर लिस्ट में 56 लाख नाम गायब होने पर चिंता जताई है। उन्होंने चुनाव बहिष्कार की संभावना भी व्यक्त की है। इस स्थिति में सवाल उठता है कि क्या विपक्ष का बहिष्कार चुनाव को रोक सकता है? संविधान और चुनाव आयोग की भूमिका पर चर्चा करते हुए, यह स्पष्ट है कि चुनाव आयोग को चुनाव कराने का अधिकार है, भले ही विपक्ष भाग न ले। जानिए इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का क्या रुख रहा है और अतीत में ऐसे बहिष्कारों के उदाहरण क्या हैं।
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025: तेजस्वी यादव का बड़ा बयान, क्या विपक्ष का बहिष्कार रोक सकता है चुनाव?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सियासी हलचल

Bihar Assembly Elections 2025: बिहार में मतदाता सूची को लेकर उठे विवाद के बीच महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया है, जिसने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। उन्होंने चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि मतदाता सूची से 56 लाख नाम गायब हैं, तो चुनाव लड़ने का कोई अर्थ नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी स्थिति में महागठबंधन चुनाव का बहिष्कार करने पर विचार कर सकता है।


क्या चुनाव का बहिष्कार संभव है?

तेजस्वी यादव और राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर वोट चोरी का आरोप लगाया है। इस संदर्भ में एक बड़ा सवाल यह उठता है कि यदि विपक्ष चुनाव का बहिष्कार करता है, तो क्या बिहार में विधानसभा चुनाव रुक सकते हैं? क्या संविधान इसकी अनुमति देता है? और क्या भारत में पहले कभी ऐसा हुआ है?


संविधान की दृष्टि में चुनाव का आयोजन

इसका सीधा उत्तर है- नहीं। भारत के संविधान और चुनाव संबंधी नियमों के अनुसार, चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह समय पर निष्पक्ष चुनाव कराए, चाहे कोई भी राजनीतिक दल उसमें भाग ले या न ले। संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को यह अधिकार देता है कि वह चुनाव की प्रक्रिया का नियंत्रण रखे और उसे आयोजित करे।


क्या सुप्रीम कोर्ट चुनाव पर रोक लगा सकता है?

विपक्ष सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है और यह तर्क दे सकता है कि बिना प्रतिस्पर्धा के चुनाव कराना लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है। वे जया बच्चन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस का हवाला दे सकते हैं, जिसमें कोर्ट ने पारदर्शिता और प्रतिनिधित्व की आवश्यकता पर जोर दिया था।


भारत में बहिष्कार के उदाहरण

भारत में सभी विपक्षी दलों का एक साथ चुनाव बहिष्कार करने का कोई बड़ा उदाहरण नहीं है, लेकिन कुछ घटनाएं जरूर हुई हैं:



  • 1989 - मिजोरम विधानसभा चुनाव: मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) ने कांग्रेस सरकार के विरोध में चुनाव का बहिष्कार किया। कांग्रेस ने सभी 40 सीटें जीतीं। चुनाव की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, लेकिन कोर्ट ने कहा कि चुनाव रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि प्रक्रिया वैध थी.


  • 1999 - जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव: अलगाववादी दलों ने चुनाव बहिष्कार किया। इसके बावजूद चुनाव हुए और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सरकार बनाई। चुनाव वैध माने गए और लोकतांत्रिक प्रक्रिया जारी रही.


  • 2014 - हरियाणा पंचायत चुनाव: कुछ विपक्षी दलों ने शिक्षा और आय संबंधी मानदंडों के खिलाफ चुनाव का बहिष्कार किया। इसके बावजूद चुनाव आयोग ने चुनाव कराए और उन्हें वैध माना गया। हालांकि, वोटिंग प्रतिशत घट गया था क्योंकि विपक्षी समर्थक वोट देने नहीं आए.



सुप्रीम कोर्ट का रुख

पीपुल यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2013) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रतिस्पर्धा और भागीदारी लोकतंत्र की बुनियाद हैं। लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग को तय प्रक्रिया के अनुसार चुनाव आयोजित करने का पूर्ण अधिकार है। जब तक संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन न हो, चुनाव पर रोक नहीं लगाई जा सकती.