बिहार विधानसभा चुनाव 2025: दूसरे चरण की वोटिंग से पहले सभी दलों की तैयारियां चरम पर
बिहार चुनाव की स्थिति
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव अब निर्णायक चरण में प्रवेश कर चुका है। दूसरे और अंतिम चरण की मतदान प्रक्रिया से पहले चुनावी गतिविधियां अपने चरम पर हैं। सभी दल अब 48 घंटे की मौन अवधि में अपनी अंतिम तैयारियों को पूरा करने में जुटे हैं। मतदान मंगलवार को होगा और परिणाम शुक्रवार को घोषित किए जाएंगे। पहले चरण के रुझानों ने चुनावी समीकरणों में बदलाव किया है, जिससे सभी दल दूसरे चरण में बेहतर प्रदर्शन की कोशिश करेंगे।
दूसरे चरण की सीटों का विवरण
दूसरे चरण का गणित
दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 सीटों पर मतदान होगा। पहले चरण में 121 सीटों पर वोटिंग हुई थी। इस बार 1,302 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं, जिनमें 136 महिलाएं शामिल हैं। कुल 3.70 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे, जिसमें 1.95 करोड़ पुरुष और 1.74 करोड़ महिलाएं हैं। इसके लिए 45,399 मतदान केंद्र स्थापित किए गए हैं।
पिछले चुनाव 2020 में इन 122 सीटों पर भाजपा ने 42, आरजेडी ने 33, जदयू ने 20, कांग्रेस ने 11 और वाम दलों ने 5 सीटें जीती थीं। 2015 में जदयू-आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन ने 80 सीटें जीतकर मजबूत स्थिति बनाई थी।
क्षेत्रीय समीकरण
क्षेत्रीय समीकरण
दूसरे चरण की सीटें बिहार के मध्य, पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्रों में फैली हुई हैं। तिरहुत, सारण और उत्तरी मिथिला भाजपा के पारंपरिक गढ़ रहे हैं, जिनमें पूर्वी पश्चिमी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी और सारण शामिल हैं। वहीं, जदयू की पकड़ भागलपुर क्षेत्र में मजबूत मानी जाती है।
महागठबंधन का प्रभाव मगध क्षेत्र में गहरा है। गया, औरंगाबाद, नवादा, जहानाबाद और अरवल जिलों में राजद और उसके सहयोगी पार्टनर बेहतर स्थिति में हैं। कांग्रेस इस क्षेत्र में कमजोर है और अपने सहयोगियों पर निर्भर है।
सीमांचल का राजनीतिक महत्व
सीमांचल में सियासी संग्राम
इस चरण का सबसे बड़ा केंद्र सीमांचल है। पूर्णिया, अररिया, किशनगंज और कटिहार की 24 सीटें राजनीतिक रूप से संवेदनशील मानी जाती हैं। सीमांचल में बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी है, जो चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाती है।
2020 में AIMIM ने यहां पांच सीटें जीतकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी, हालांकि बाद में उसके चार विधायक राजद में शामिल हो गए। भाजपा ने यहां आठ, जदयू ने चार, कांग्रेस ने पांच और राजद- वाम दलों ने एक-एक सीट जीती थी।
इस बार सीमांचल में सभी दलों ने आक्रामक प्रचार अभियान चलाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की रैलियों से लेकर राहुल गांधी की 'मतदाता अधिकार यात्रा' तक हर पार्टी ने यहां अपनी पूरी ताकत झोंकी है।
जातीय समीकरण का प्रभाव
जातीय गणित की भूमिका
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा महत्वपूर्ण रहे हैं। दूसरे चरण में 36 प्रतिशत की हिस्सेदारी वाला अति पिछड़ा वर्ग एक महत्वपूर्ण फैक्टर साबित हो सकता है। नीतीश कुमार की राजनीति में यह वर्ग अब तक गेम-चेंजर रहा है।
राहुल गांधी इस बार इस वोट बैंक को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। एनडीए यादव वर्चस्व वाले वोट बैंक का मुकाबला करने के लिए गैर यादव ओबीसी पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। आरा, बक्सर और रोहतास में अनुसूचित जाति वोट भी कई सीटों पर जीत-हार तय करेंगे।
चुनाव की अंतिम तैयारी
अंतिम मोड़ पर चुनाव
दूसरे चरण की वोटिंग से पहले सभी दलों ने पूरी ताकत झोंकी है। पहले चरण की ऐतिहासिक वोटिंग के बाद अब सभी की नजरें इस चरण पर हैं। यह चरण तय करेगा कि बिहार की अगली सरकार किसकी होगी और किसकी रणनीति जनता के दिलों तक पहुंची है।
