बिहार विधानसभा चुनाव 2025: बेगूसराय की राजनीतिक स्थिति और चुनौतियाँ

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: बेगूसराय का राजनीतिक महत्व
Bihar Assembly Election 2025: बेगूसराय विधानसभा क्षेत्र अपने राजनीतिक इतिहास और औद्योगिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इसे पहले 'मिनी मॉस्को' के नाम से जाना जाता था, जब यह वामपंथी विचारधारा का गढ़ हुआ करता था। हाल के वर्षों में, यह सीट भारतीय जनता पार्टी (BJP) का मजबूत गढ़ बन चुकी है। 2025 के विधानसभा चुनाव में क्या विपक्ष इस मजबूत स्थिति को चुनौती दे पाएगा?
बेगूसराय का औद्योगिक और सामाजिक महत्व
बेगूसराय बिहार के प्रमुख औद्योगिक और वाणिज्यिक केंद्रों में से एक है। यह जिला मुख्यालय होने के साथ-साथ शहरी और अर्ध-शहरी जनसंख्या का बड़ा केंद्र भी है। यह विधानसभा सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है और बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। इस क्षेत्र का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों का गवाह रहा है। वामपंथी विचारधारा ने यहां गहरी जड़ें जमाई थीं, लेकिन अब बीजेपी का प्रभाव बढ़ चुका है।
मतदाता और जातीय समीकरण
चुनाव आयोग की हालिया मतदाता सूची के अनुसार, बेगूसराय विधानसभा क्षेत्र में लगभग 3.10 लाख मतदाता हैं, जिनमें 1.65 लाख पुरुष और 1.45 लाख महिलाएं शामिल हैं। 2020 की तुलना में मतदाताओं की संख्या में लगभग 10,000 की वृद्धि हुई है। इस सीट पर औसत मतदान प्रतिशत 52-55% के बीच रहता है।
जातीय समीकरणों की बात करें तो भूमिहार और वैश्य जैसे सवर्ण समुदायों की अच्छी-खासी आबादी बीजेपी के लिए मजबूत आधार बनाती है। इसके अलावा, यादव, मुस्लिम और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) के मतदाता भी इस सीट पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन समुदायों का रुझान किसी भी पार्टी की जीत या हार तय कर सकता है।
बीजेपी का बेगूसराय में प्रभाव
पिछले एक दशक से बेगूसराय विधानसभा सीट पर बीजेपी का वर्चस्व है। 2010 से अब तक यह सीट बीजेपी के पास रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के कुंदन कुमार ने कांग्रेस की अमिता भूषण को 4,500 से अधिक वोटों से हराया था। इससे पहले 2015 में भी बीजेपी के अमरेंद्र कुमार अमर ने अमिता भूषण को 4,000 से अधिक वोटों से शिकस्त दी थी। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने विपक्षी महागठबंधन (सीपीआई) के उम्मीदवार को करीब 28,000 वोटों के बड़े अंतर से हराया था।
विपक्ष के सामने चुनौतियाँ
महागठबंधन के लिए इस सीट को जीतना आसान नहीं होगा। विपक्ष को जीत के लिए न केवल वामपंथी वोट बैंक को एकजुट करना होगा, बल्कि शहरी और युवा मतदाताओं के बीच भी अपनी पैठ बढ़ानी होगी। इसके अलावा, प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी भी इस क्षेत्र में कुछ प्रभाव डाल सकती है। खासकर शिक्षित और युवा वोटरों के बीच जनसुराज की मौजूदगी विपक्ष के लिए नई चुनौती पेश कर सकती है। हालांकि, इसका प्रभाव कितना होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है।