बिहार विधानसभा चुनाव: AIMIM ने शुरू किया चुनावी अभियान, 100 सीटों पर उतारेगी उम्मीदवार

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बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों में राजनीतिक गतिविधियाँ तेजी से बढ़ रही हैं। सभी प्रमुख राजनीतिक दल अपने-अपने उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं। इसी क्रम में, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करते हुए पहली सूची जारी की है।
किशनगंज में लिस्ट का ऐलान
AIMIM के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने किशनगंज में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पार्टी की पहली सूची का अनावरण किया। उन्होंने बताया कि उनकी पार्टी राज्य के सीमांचल क्षेत्र सहित कई जिलों में चुनाव लड़ेगी। अख्तरुल ने कहा कि AIMIM ने धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकजुट करने का प्रयास किया, ताकि सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बनाया जा सके, लेकिन कांग्रेस और राजद जैसे बड़े दलों ने इस दिशा में सहयोग नहीं किया।
तीसरे मोर्चे की आवश्यकता
AIMIM नेता ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष दलों से सकारात्मक संकेत न मिलने के कारण पार्टी को मजबूरन तीसरा गठबंधन बनाने का निर्णय लेना पड़ा। उन्होंने कहा कि हमने हर संभव प्रयास किया कि एकजुट होकर सांप्रदायिक ताकतों का सामना किया जाए, लेकिन जब बात नहीं बनी तो हमें अपना रास्ता चुनना पड़ा।
कौन-कौन से जिलों में चुनाव लड़ेगी AIMIM?
AIMIM ने स्पष्ट किया है कि पार्टी बिहार के सीमांचल क्षेत्र के चार जिलों किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार और अररिया में चुनाव लड़ेगी। इसके अलावा, गया, नवादा, जमुई, मोतिहारी, सीवान, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, मधुबनी, वैशाली, गोपालगंज, दरभंगा और भागलपुर जैसी अन्य सीटों पर भी AIMIM अपने उम्मीदवार उतारेगी।
पिछली बार से पांच गुना अधिक सीटों पर चुनाव
पिछले विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमित सीटों पर चुनाव लड़ा था और किशनगंज में अख्तरुल ईमान ने जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार पार्टी ने 100 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का निर्णय लिया है, जो पिछले चुनाव की तुलना में लगभग पांच गुना अधिक है। इससे AIMIM के चुनावी इरादों की गंभीरता और विस्तार का पता चलता है।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि AIMIM के इस निर्णय से राजद और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों को बड़ा नुकसान हो सकता है, विशेषकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में। वहीं, भाजपा और एनडीए को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिलने की संभावना है, क्योंकि धर्मनिरपेक्ष वोटों का बिखराव भाजपा विरोधी ताकतों को कमजोर कर सकता है।