बिहार विधानसभा चुनाव: एनडीए और महागठबंधन के वादों की तुलना
 
                           
                        बिहार में चुनावी माहौल
राकेश सिंह | बिहार में विधानसभा चुनावों की गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। 2025 के चुनाव में मुख्य मुकाबला एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) और महागठबंधन के बीच होगा। दोनों गठबंधनों ने अपने-अपने घोषणा पत्र जारी कर दिए हैं। एनडीए का संकल्प पत्र और महागठबंधन का तेजस्वी का प्रण दस्तावेज वोटरों को आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन यह जानना जरूरी है कि कौन सा गठबंधन अधिक प्रभावी है। क्या ये वादे वास्तविकता में बदलेंगे या केवल चुनावी दिखावे हैं?
राजनीतिक पृष्ठभूमि
बिहार की राजनीति हमेशा से दिलचस्प रही है। यहाँ विकास, रोजगार, किसान और महिलाओं के मुद्दे चुनावी जीत की कुंजी होते हैं। एनडीए में बीजेपी, जेडीयू और अन्य सहयोगी शामिल हैं, जबकि महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दल हैं। दोनों पक्षों ने युवाओं को नौकरी, महिलाओं को आर्थिक सहायता और बुनियादी ढांचे पर जोर दिया है। लेकिन क्या ये वादे पिछले चुनावों की तरह हवा में उड़ जाएंगे या वास्तविकता में उतरेंगे?
एनडीए ने 31 अक्टूबर 2025 को अपना घोषणा पत्र जारी किया, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और अन्य नेताओं की उपस्थिति में बड़े वादे किए गए। मुख्य ध्यान युवाओं, महिलाओं, किसानों और बुनियादी ढांचे पर है।
एनडीए के वादे
एनडीए का सबसे बड़ा वादा एक करोड़ सरकारी नौकरियों और रोजगार के अवसरों का निर्माण करना है। उनका कहना है कि अगले पांच वर्षों में यह लक्ष्य हासिल किया जाएगा। इसके लिए हर जिले में मेगा स्किल सेंटर खोले जाएंगे, जहाँ युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा। साथ ही, हर जिले में 10 नए औद्योगिक पार्क स्थापित किए जाएंगे।
महिलाओं के लिए 'लखपति दीदी' योजना पर जोर दिया गया है, जिसमें एक करोड़ महिलाओं को उद्यमी बनाने का लक्ष्य है। इसके तहत दो लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी। गरीब परिवारों को 125 यूनिट मुफ्त बिजली और 50 लाख नए घर देने का वादा भी किया गया है। किसानों के लिए पीएम-किसान योजना के तहत 9,000 रुपये सालाना सहायता और सभी फसलों पर एमएसपी की गारंटी दी गई है।
महागठबंधन के वादे
महागठबंधन ने हाल ही में अपना घोषणा पत्र जारी किया, जिसका नाम 'बिहार का तेजस्वी प्रण' है। तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया गया है। इसका फोकस सामाजिक सुरक्षा, रोजगार और किसानों पर है। महागठबंधन ने हर परिवार को एक नौकरी देने का वादा किया है, जो 20 दिनों के भीतर उपलब्ध कराने का लक्ष्य है।
महिलाओं को 2,500 रुपये प्रति माह आर्थिक सहायता देने का वादा किया गया है। इसके अलावा, पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल करने, बुजुर्गों को पेंशन और फसलों पर एमएसपी की गारंटी देने का भी आश्वासन दिया गया है।
विभिन्न मुद्दों पर तुलना
अब सवाल यह है कि कौन सा घोषणा पत्र अधिक मजबूत है? रोजगार और युवा मुद्दों पर दोनों ने एक करोड़ नौकरियों का वादा किया है। एनडीए में स्किल सेंटर और औद्योगिक पार्क से रोजगार पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जबकि महागठबंधन में हर परिवार को नौकरी देने का वादा किया गया है, लेकिन समय सीमा अव्यावहारिक लगती है।
महिलाओं के सशक्तिकरण के मुद्दे पर एनडीए की योजना अधिक दीर्घकालिक है, जबकि महागठबंधन का वादा तात्कालिक सहायता प्रदान करता है। दोनों के वादे कितने प्रभावी होंगे, यह देखना बाकी है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, एनडीए का घोषणा पत्र अधिक विस्तृत और बुनियादी ढांचे पर केंद्रित है, जबकि महागठबंधन का ध्यान सामाजिक सुरक्षा पर है। दोनों में लॉलीपॉप की महक है। जैसे, एक करोड़ नौकरियां कैसे आएंगी? बिहार का बजट तीन लाख करोड़ है, ऐसे में बड़े वादों के लिए केंद्र पर निर्भरता।
महागठबंधन का कहना है कि एनडीए ने भ्रष्टाचार बढ़ाया है। लेकिन दोनों पक्षों में आंतरिक कलह भी है। बिहार को स्थिर सरकार की आवश्यकता है, जो विकास पर ध्यान केंद्रित करे। अंत में, चुनाव घोषणा पत्रों से नहीं, नेताओं की नीयत से जीते जाते हैं।
