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बिहार विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची की पुनरीक्षण प्रक्रिया पर उठे सवाल

बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी के बीच मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर सवाल उठ रहे हैं। नेताओं ने इस प्रक्रिया को साजिश करार दिया है, जिसमें मतदाताओं से नागरिकता साबित करने को कहा जा रहा है। जानें इस मुद्दे पर क्या कहा गया और इसके पीछे की राजनीति।
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बिहार विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची की पुनरीक्षण प्रक्रिया पर उठे सवाल

बिहार में चुनावी हलचल


पटना। बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी तेज हो गई है। चुनाव से पहले मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान शुरू हो चुका है। शुक्रवार को इंडिया गठबंधन के नेताओं ने पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की। इस मौके पर बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष राजेश कुमार, पवन खेड़ा, तेजस्वी यादव और अन्य नेता उपस्थित थे।


राजेश कुमार ने कहा कि, महाराष्ट्र में चुनाव के दौरान अवैध तरीके से मतदाताओं को जोड़ा गया, जिससे NDA की सरकार बनी। अब बिहार में चुनाव में केवल दो महीने का समय बचा है। हाल ही में जारी अधिसूचना के अनुसार, मतदाताओं का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) किया जा रहा है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जो कार्य सामान्यतः महीनों या वर्षों में होता है, उसे एक महीने में कैसे पूरा किया जाएगा? एक ओर जहां महाराष्ट्र में अवैध तरीके से वोट जोड़े गए, वहीं बिहार में वैध तरीके से मतदाताओं को बाहर किया जा रहा है। यह बिहार के मतदाताओं के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है। हम इंडिया गठबंधन के सभी साथी इसका विरोध करते हैं।


पवन खेड़ा ने कहा कि, बिहार के लोगों के अधिकारों पर हमला किया जा रहा है। विधानसभा चुनाव से पहले जानबूझकर मतदाताओं का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) किया जा रहा है। इसमें घर-घर जाकर मतदाताओं की पहचान की जाएगी और उनसे नागरिकता साबित करने को कहा जाएगा। यह स्पष्ट रूप से एक साजिश है, जो बिहार के मतदाताओं के अधिकारों और पहचान पर हमला कर रही है।


उन्होंने आगे बताया कि, गहन पुनरीक्षण के दौरान नागरिकता साबित करने के लिए 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे लोगों को अपनी जन्म तिथि या स्थान का प्रमाण देना होगा। वहीं, 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे लोगों को अपने माता-पिता में से किसी एक का वैध दस्तावेज भी प्रस्तुत करना होगा। 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे मतदाताओं को अपने और अपने माता-पिता के वैध दस्तावेज देने होंगे।


इस प्रक्रिया पर सवाल उठते हैं कि, यह अब क्यों किया जा रहा है? मानसून के दौरान बिहार के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में इस प्रक्रिया को एक महीने में कैसे पूरा किया जाएगा? जब लोकसभा चुनाव में इसी मतदाता सूची पर वोट डाले गए थे, तो विधानसभा चुनाव में क्यों नहीं? यह स्पष्ट है कि जब भी BJP पर संकट आता है, वह चुनाव आयोग की ओर भागती है। चुनाव आयोग मोदी जी के तीन बंदरों की तरह है, जो न सच सुनते हैं, न सच देखते हैं, और न ही सच बोलते हैं।