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बिहार विधानसभा चुनाव: राहुल गांधी की यात्रा और महागठबंधन की चुनौतियाँ

बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में राहुल गांधी की यात्रा महत्वपूर्ण है, लेकिन महागठबंधन के भीतर चल रहे विवादों ने स्थिति को जटिल बना दिया है। तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित न करने के कारण राजद के नेता नाराज हैं। जानें इस राजनीतिक परिदृश्य में क्या हो रहा है और रैली रद्द होने के पीछे के असली कारण क्या हैं।
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बिहार विधानसभा चुनाव: राहुल गांधी की यात्रा और महागठबंधन की चुनौतियाँ

राहुल गांधी की यात्रा और महागठबंधन की स्थिति

बिहार में विधानसभा चुनावों की तैयारी जोरों पर है, और इस संदर्भ में राहुल गांधी राज्य में यात्रा कर रहे हैं। उनके साथ राजद के तेजस्वी यादव, सीपीआई माले के दीपांकर भट्टाचार्य और वीआईपी के मुकेश सहनी भी शामिल हैं। सोमवार को प्रियंका गांधी वाड्रा भी इस यात्रा में शामिल हुईं। आगे अखिलेश यादव और हेमंत सोरेन के भी शामिल होने की उम्मीद है। हालांकि, इन सब प्रयासों के बावजूद महागठबंधन के भीतर विवाद बढ़ता जा रहा है। इस झगड़े के चलते एक सितंबर को पटना में आयोजित होने वाली महारैली को स्थगित कर दिया गया है। इसके पीछे विभिन्न कारण बताए जा रहे हैं, जिसमें आरा में रैली का आयोजन भी शामिल है। अब राहुल गांधी पटना की सड़कों पर एक लाख लोगों के साथ मार्च करने की योजना बना रहे हैं, लेकिन गांधी मैदान में विपक्ष की साझा रैली का विकल्प नहीं हो सकता।


गांधी मैदान में रैली रद्द होने के पीछे के कारणों पर विपक्ष की ओर से कई बातें की जा रही हैं, लेकिन असली मुद्दा यह है कि राजद के नेता इस बात से नाराज हैं कि राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया। सीमांचल की यात्रा के दौरान एक पत्रकार ने इस विषय पर राहुल से सवाल किया, लेकिन उन्होंने सीधे जवाब देने के बजाय बात को घुमा दिया। इससे पहले तेजस्वी यादव ने मंच से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की अपील की थी। राजद के नेता चाहते थे कि राहुल भी बिहार के लोगों से कहें कि वे तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाएं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राहुल की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद इस मुद्दे पर विवाद बढ़ गया और कहा गया कि लालू प्रसाद की पार्टी रैली से दूर रहेगी।


सूत्रों के अनुसार, राजद ने कांग्रेस को सूचित किया है कि यदि गांधी मैदान में रैली करनी है, तो कांग्रेस इसे अकेले आयोजित कर सकती है। इससे कांग्रेस के नेताओं में चिंता बढ़ गई है, क्योंकि उन्हें पता है कि गांधी मैदान की रैली अकेले नहीं की जा सकती। यदि कम्युनिस्ट पार्टियाँ साथ आतीं, तो रैली संभव हो सकती थी, लेकिन राजद की सहमति के बिना उनका समर्थन नहीं मिलेगा। मुकेश सहनी का तालमेल भी कांग्रेस से नहीं, बल्कि राजद से है। इसका मतलब है कि राजद के अलग होते ही अन्य पार्टियाँ भी दूर हो गईं। इसके परिणामस्वरूप, कांग्रेस को रैली रद्द करने का निर्णय लेना पड़ा। यह सोचने वाली बात है कि कांग्रेस ने रैली रद्द करने का निर्णय लिया, लेकिन तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का निर्णय नहीं लिया। इसका संकेत है कि कांग्रेस के भीतर सीट बंटवारे और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर कुछ अलग विचार चल रहे हैं। कांग्रेस जल्दी समझौता करने के लिए तैयार नहीं है और वह मोलभाव की प्रक्रिया अपने हाथ में रखना चाहती है।