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बिहार विधानसभा चुनाव: विपक्ष की 'वोटर अधिकार यात्रा' से बढ़ी सियासी हलचल

बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी के साथ, विपक्ष ने 'वोटर अधिकार यात्रा' शुरू की है, जिसका उद्देश्य मतदाताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना है। यह यात्रा 17 अगस्त से शुरू होकर 1 सितंबर को पटना में समाप्त होगी, और इसमें 23 जिलों का दौरा किया जाएगा। विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग की प्रक्रिया के तहत लाखों मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए हैं, जिससे लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा है। जानें इस यात्रा के पीछे की रणनीति और सत्ता पक्ष की प्रतिक्रिया।
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बिहार में चुनावी गतिविधियों में तेजी

जैसे-जैसे बिहार में विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आ रहा है, राजनीतिक गतिविधियों में तेजी आ गई है। इस बार विपक्ष ने 'वोटर अधिकार यात्रा' के माध्यम से मतदाताओं के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का नया तरीका अपनाया है। यह यात्रा केवल चुनावी रणनीति नहीं है, बल्कि मताधिकार से जुड़ी चिंताओं और जागरूकता फैलाने का एक बड़ा अभियान है।


इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य आम जनता, विशेषकर पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों को यह समझाना है कि उनके वोट का अधिकार कितना महत्वपूर्ण है और यह कैसे खतरे में पड़ सकता है। विपक्षी गठबंधन का दावा है कि चुनाव आयोग द्वारा की गई विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के दौरान लाखों योग्य मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए हैं। कांग्रेस के नेता पवन खेड़ा ने इस आंकड़े को 65 लाख बताया है।


विपक्ष ने गंभीर आरोप लगाया है कि यह सब सत्ता पक्ष और चुनाव आयोग की मिलीभगत से हो रहा है, जिसे वे 'वोट की चोरी' करार दे रहे हैं। इससे लोकतंत्र की नींव पर सीधा असर पड़ सकता है, क्योंकि एक बड़ी आबादी मतदान से वंचित हो सकती है।


'वोटर अधिकार यात्रा' की शुरुआत 17 अगस्त को सासाराम से हुई थी और यह 1 सितंबर को पटना के गांधी मैदान में समाप्त होगी। यात्रा 23 जिलों से होकर गुजरेगी, जिनमें गया, औरंगाबाद, भागलपुर, दरभंगा, मधुबनी, अररिया, कटिहार, नवादा, सीवान, गोपालगंज, छपरा जैसे जिले शामिल हैं। यह यात्रा लगभग 1300 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए जनमानस से सीधा संवाद स्थापित कर रही है।


इस यात्रा के प्रमुख चेहरे राहुल गांधी और तेजस्वी यादव हैं, जिनके साथ कांग्रेस, राजद, वाम दलों और इंडिया गठबंधन के अन्य नेता भी शामिल हैं। यह न केवल मतदाता जागरूकता का प्रयास है, बल्कि विपक्षी दलों की एकता का भी सार्वजनिक प्रदर्शन है। नेताओं का कहना है कि वे इस यात्रा के माध्यम से हर उस नागरिक तक पहुंचना चाहते हैं, जिसे लगता है कि उसका नाम बिना कारण वोटर लिस्ट से हटा दिया गया है।


वहीं, सत्ता पक्ष इस अभियान को केवल एक राजनीतिक ड्रामा मानता है। बीजेपी नेता अश्विनी चौबे ने इसे व्यंग्य में 'शवयात्रा' कहा, जबकि संजय सरावगी ने तंज कसते हुए कहा कि यह यात्रा विपक्ष के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री उम्मीदवार तय करने की कवायद है।


SIR यानी विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट करना था, लेकिन विपक्ष का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं रही। आरोप हैं कि सत्यापन के बिना ही नाम हटाए गए, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कई लोग पहली बार वोट डालने वाले थे, लेकिन अब उनका नाम सूची में नहीं है।