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बीजेपी और आरएसएस के बीच संतुलन बनाने की कोशिशों पर उठे सवाल

15 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आरएसएस की प्रशंसा के बाद विपक्ष ने इस पर सवाल उठाए हैं। क्या आरएसएस का आजादी के समय योगदान महत्वपूर्ण था? वरिष्ठ पत्रकार राजीव रंजन ने बताया कि बीजेपी और आरएसएस के बीच कोई मतभेद नहीं है, बल्कि यह एक वर्चस्व की लड़ाई है। जानें इस मुद्दे पर और क्या कहा गया है और बीजेपी की आरएसएस के साथ संतुलन बनाने की कोशिशों के पीछे की वजह क्या है।
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बीजेपी और आरएसएस के बीच संतुलन बनाने की कोशिशों पर उठे सवाल

आरएसएस की तारीफ पर विपक्ष की प्रतिक्रियाएं

15 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से आरएसएस की सराहना की, जिसके बाद विपक्ष ने इस पर अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं। विपक्ष आरएसएस के योगदान पर सवाल उठा रहा है, खासकर आजादी के समय इसकी भूमिका को लेकर। यह भी चर्चा हो रही है कि बीजेपी आरएसएस के साथ संतुलन बनाने की कोशिश क्यों कर रही है।


वरिष्ठ पत्रकार राजीव रंजन ने इस संदर्भ में कहा कि कई लोग मानते हैं कि आरएसएस और बीजेपी के बीच कोई मतभेद है। हालांकि, यह केवल एक वर्चस्व की लड़ाई हो सकती है, जो नेताओं, व्यक्तित्वों और संगठनों के बीच होती है। लेकिन बीजेपी आरएसएस की बातों को नकार नहीं सकती और न ही उन्हें नजरअंदाज कर सकती है। उन्होंने कहा, 'आरएसएस को कम करके बीजेपी गिनती में नहीं रह सकती।'