भाजपा का संगठनात्मक पतन: संघ की भूमिका और मोदी का नियंत्रण

भाजपा का संगठनात्मक संकट
आरएसएस के प्रभाव में भाजपा का हाल बेहाल है। संघ-भाजपा की संगठनात्मक संरचना हमेशा कांग्रेस से बेहतर मानी जाती थी। कांग्रेस में नेता अधीनस्थ होते थे, जबकि भाजपा का संगठन सलाह-मशविरे पर आधारित था। लेकिन अब स्थिति यह है कि कांग्रेस में राहुल गांधी अपने महासचिवों से बात करके निर्णय लेते हैं, जबकि भाजपा में पार्टी अध्यक्ष का कोई महत्व नहीं रह गया है। अब सब कुछ परची से तय हो रहा है। प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय अध्यक्ष या मुख्यमंत्री का चयन सब परची से होता है। राज्य में जो भी प्रभारी जाता है, उसे अचानक फोन पर बताया जाता है कि किसे अध्यक्ष बनाना है। संघ से कोई सलाह नहीं ली जाती।
हालांकि, नरेंद्र मोदी के पास संघ के प्रचारक सुरेश सोनी का समर्थन है। सुरेश सोनी एक कुशल राजनीतिक खिलाड़ी हैं और उनकी एक अलग संगठनात्मक शक्ति है। वे नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ मिलकर भाजपा के भविष्य की योजना बना रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि वे मोदी के बाद 2029 में अगला प्रधानमंत्री भी तय करें।
इसलिए, भाजपा का अगला अध्यक्ष संघ नहीं, बल्कि अमित शाह और सुरेश सोनी तय करेंगे। नरेंद्र मोदी चाहें तो मनोहर लाल खट्टर को अध्यक्ष बना सकते हैं, लेकिन खट्टर की वफादारी मोदी के प्रति है, अमित शाह के प्रति नहीं।
पचास साल पहले जब देवकांत बरूआ कांग्रेस अध्यक्ष बने थे, तब पूरे देश में हलचल मच गई थी। अब भाजपा भी उसी दिशा में बढ़ रही है, जहां उसके अध्यक्ष और मुख्यमंत्री भी देवकांत बरूआ के समान होंगे।
भाजपा अब संघ की सलाह पर नहीं चल रही है। संगठन मंत्री की मैसेजिंग से अध्यक्ष बनाना हो रहा है। सभी जगह मोदी या उनके समर्थक ही प्रमुख हो गए हैं।
मध्य प्रदेश में सुरेश सोनी ने अपने मुख्यमंत्री बनाने के बाद प्रदेश अध्यक्ष भी अपने मन से बना दिया है। पुराने भाजपाई और संगठन नेता इस बदलाव को समझ नहीं पा रहे हैं।
हाल ही में सुरेश सोनी ने नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत के बीच बातचीत कराई, लेकिन भाजपा संगठन में कोई सुधार नहीं हुआ है। पार्टी कार्यसमिति की बैठकें और महासचिवों के बीच सलाह-मशविरे की प्रक्रिया खत्म हो गई है।
इस प्रकार, भाजपा का पूरा संगठन नरेंद्र मोदी की उंगली पर टिका है, और उन्हें सलाह देने वाले सुरेश सोनी और अमित शाह हैं।
जब कांग्रेस सत्ता में होती थी, तो उसका संगठन सक्रिय रहता था। चाहे इंदिरा गांधी का समय हो या सोनिया गांधी का, कांग्रेस के नेता जनता के काम करते थे। आज, राहुल गांधी के नेतृत्व में भी कांग्रेस में सत्ता का भाव है। जबकि भाजपा के विधायक और सांसद अपनी सरकारों में किस भाव से काम कर रहे हैं, यह सब जानते हैं।