भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ विवाद: क्या है आगे का रास्ता?
अमेरिका का टैरिफ युद्ध और भारत की स्थिति
अमेरिकी प्रशासन ने टैरिफ युद्ध के माध्यम से वैश्विक स्तर पर अतिरिक्त वसूली की नीति अपनाई है, जिसमें वह मित्र देशों को भी रियायत नहीं दे रहा है। इस स्थिति में, भारत को भी कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।
अमेरिका ने स्टील और अल्यूमिनियम के आयात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने के खिलाफ भारत की डब्लूटीओ में की गई शिकायत को अस्वीकार कर दिया है। भारत ने अपनी शिकायत में यह बताया था कि अमेरिका का यह कदम संरक्षणवादी है और यह विश्व व्यापार संगठन के नियमों का उल्लंघन करता है। हालांकि, ट्रंप प्रशासन ने इसे "राष्ट्रीय सुरक्षा" के कारण उठाया गया कदम बताया है। इस निर्णय ने भारत की उन उम्मीदों को भी धक्का पहुंचाया है कि द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) के तहत वह अपने उत्पादों पर टैरिफ में कमी करवा सकेगा। अब भारत के पास क्या विकल्प हैं?
क्या भारत को अमेरिकी वस्तुओं पर एकतरफा छूट देने का रास्ता अपनाना चाहिए? अमेरिका से बादाम और अखरोट पर पहले ही छूट दी जा चुकी है, जबकि बीटीए में भारत ने अन्य आयात पर शुल्क में भारी कटौती की पेशकश की है। लेकिन सवाल यह है कि इसके बदले भारत को क्या लाभ मिलेगा? ट्रंप प्रशासन टैरिफ युद्ध के जरिए वैश्विक संसाधनों की वसूली की नीति पर चल रहा है, जिसमें वह मित्र देशों को भी कोई रियायत नहीं दे रहा है। इसलिए, भारत को भी कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। ट्रंप ने स्टील और अल्यूमिनियम पर टैरिफ को 50 प्रतिशत करने की घोषणा की है, जो चार जून से लागू होगा।
इसका भारत पर और भी नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। थिंक टैंक जीटीआरआई के अनुसार, 2024-25 में भारत से अमेरिका को आयरन, स्टील, और अल्यूमिनियम उत्पादों का निर्यात 4.56 बिलियन डॉलर था। ट्रंप का उद्देश्य अपने देश में इन वस्तुओं के उत्पादन को पुनर्जीवित करना है। अमेरिकी कंपनियों को संरक्षण देने के लिए उन्होंने ऊंचे टैरिफ का सहारा लिया है। ऐसे में, भारत को भी अपने अन्य उत्पादों के लिए इसी तरह का संरक्षण क्यों नहीं अपनाना चाहिए? नरम रुख अपनाने और रियायतें देने का प्रयास किया गया है। अब समय है कि भारत अपने इरादों को मजबूत बनाए और अपने कृषि और औद्योगिक उत्पादों को संरक्षण प्रदान करे।
