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भारत और पाकिस्तान के कूटनीतिक प्रयासों की तुलना

इस लेख में भारत और पाकिस्तान के कूटनीतिक प्रयासों की तुलना की गई है। भारत के डेलिगेशन की गतिविधियों और पाकिस्तान की कूटनीति के बीच के अंतर को समझाया गया है। लेख में यह भी बताया गया है कि कैसे पाकिस्तान ने अपने सहयोगियों के साथ संबंध मजबूत किए, जबकि भारत की कूटनीति केवल दिखावे तक सीमित रह गई। जानें, इन दोनों देशों की रणनीतियों का क्या प्रभाव पड़ा है।
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भारत और पाकिस्तान के कूटनीतिक प्रयासों की तुलना

भारत के डेलिगेशन की गतिविधियाँ

भारत के डेलिगेशन की मुलाकातें किन लोगों से हो रही हैं, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। इन देशों के नीतिगत निर्णयों में इन व्यक्तियों की भूमिका क्या है, यह भी जानना आवश्यक है। भारतीय डेलिगेशन का असली उद्देश्य क्या है, यह स्पष्ट नहीं है। भारतीय नेता विभिन्न कार्यक्रमों में भाषण दे रहे हैं, जो मुख्यतः भारतीय दूतावासों द्वारा आयोजित किए जा रहे हैं। अधिकांश मुलाकातें रिटायर नेताओं और थिंक टैंक्स के साथ हो रही हैं। भारतीय मूल के लोग इन कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं, और डेलिगेशन के सदस्य भारत के राजदूतों की प्रशंसा कर रहे हैं।


पाकिस्तान की कूटनीति

इसके विपरीत, पाकिस्तान की स्थिति पर ध्यान देना आवश्यक है। पाकिस्तान एक कमजोर देश है, लेकिन भारत की सैन्य कार्रवाई के दौरान उसे कई देशों का समर्थन मिला। सीजफायर के बाद, भारत ने कई प्रतिनिधिमंडल भेजे, जबकि पाकिस्तान ने कुछ नेताओं को विदेश भेजा। यह आश्चर्यजनक है कि पाकिस्तान ने उन देशों को चुना, जिन्होंने उसकी मदद की थी। इसके बाद, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने तुर्की की यात्रा की और वहां के राष्ट्रपति एर्दोआन से मुलाकात की।


चीन और पाकिस्तान का सहयोग

पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री इशाक डार ने चीन की यात्रा की, जहां उन्होंने चीनी नेताओं से बातचीत की। इस मुलाकात के बाद, चीन ने पाकिस्तान को लगभग 4 अरब डॉलर के कर्ज में डिफॉल्ट से बचा लिया। यह पाकिस्तान और चीन की कूटनीति का एक उदाहरण है, जिसमें अफगानिस्तान के विदेश मंत्री भी शामिल हुए।


भारत की कूटनीति की सीमाएँ

भारत की सैन्य कार्रवाई के दौरान किसी भी देश ने उसका खुलकर समर्थन नहीं किया। इसलिए, भारत के पास उन देशों की यात्रा करने का कोई विकल्प नहीं था, जिन्होंने उसका साथ दिया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों सहित 33 देशों में अपना प्रतिनिधिमंडल भेजा। इसका परिणाम यह है कि भारत की कूटनीति केवल दिखावे तक सीमित रह गई, जबकि पाकिस्तान ने उन देशों के साथ अपने संबंध मजबूत किए, जिन्होंने संकट के समय उसका साथ दिया।