भारत और साइप्रस के बीच नई सामरिक मित्रता का उदय
 
                           
                        भारत की विदेश नीति में नया मोड़
भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण और रणनीतिक परिवर्तन देखने को मिल रहा है। साइप्रस, जो पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच स्थित एक छोटा सा देश है और जो दशकों से तुर्की के साथ विवाद में है, अब भारत का नया सामरिक मित्र बनता जा रहा है। यह मित्रता केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि एक बहुध्रुवीय विश्व में भारत की बढ़ती भूमिका का प्रतीक है।
भारत-साइप्रस संबंधों की समीक्षा
साइप्रस के विदेश मंत्री कॉन्स्टेंटिनोस कोम्बोस की भारत यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने 2025-2029 के भारत-साइप्रस एक्शन प्लान की प्रगति पर चर्चा की। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इसे 'विश्वसनीय मित्रता' करार देते हुए कहा कि 'भारत और साइप्रस एक भरोसेमंद साझेदार हैं, और यह संबंध समय और विश्वास की कसौटी पर खरा उतरा है।' उन्होंने साइप्रस को भारत का 'स्थायी सहयोगी' मानते हुए आतंकवाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता और न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) में भारत की सदस्यता के लिए साइप्रस के समर्थन के लिए धन्यवाद दिया।
साइप्रस की भूमिका
कोम्बोस ने कहा कि 'भारत एक वैश्विक महाशक्ति है और हम इसे न केवल पुराने मित्र के रूप में बल्कि भविष्य के साझेदार के रूप में देखते हैं।' यह बयान केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन की नई दिशा को दर्शाता है।
भौगोलिक महत्व
साइप्रस भूमध्य सागर के पूर्वी किनारे पर स्थित है, जो यूरोप, एशिया और अफ्रीका के संगम पर है। यह समुद्री गलियारा भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) का संभावित हिस्सा बन सकता है। साइप्रस, जो यूरोपीय संघ का सदस्य है, 2026 में यूरोपीय संघ परिषद की अध्यक्षता भी संभालेगा। इस प्रकार, साइप्रस का भारत के साथ घनिष्ठ संबंध भारत-ईयू संबंधों को नई गति दे सकता है।
साझेदारी के नए अवसर
भारत और साइप्रस के बीच ऊर्जा, रक्षा, समुद्री सुरक्षा और तकनीकी सहयोग के नए अवसर उभर रहे हैं। साइप्रस का भौगोलिक स्थान भारत के लिए पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच एक सामरिक गेटवे बन सकता है। वहीं, साइप्रस के लिए भारत एक भरोसेमंद एशियाई साझेदार है, जो तुर्की के बढ़ते दबाव के बीच संतुलन और सुरक्षा का सहारा प्रदान करता है।
तुर्की के साथ विवाद
साइप्रस और तुर्की के बीच का विवाद, जिसे साइप्रस संकट कहा जाता है, आज भी यूरोप की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। तुर्की ने 1974 में साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर कब्जा किया था और वहां एक अलग 'तुर्की गणराज्य उत्तरी साइप्रस' की स्थापना की, जिसे विश्व समुदाय ने मान्यता नहीं दी। भारत ने हमेशा साइप्रस की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन किया है।
भारत की नई रणनीति
भारत और साइप्रस की साझेदारी एक सूक्ष्म रणनीतिक संदेश देती है कि यह केवल एक छोटे यूरोपीय देश से दोस्ती नहीं है, बल्कि तुर्की के विस्तारवादी रुख के प्रति एक वैकल्पिक शक्ति संतुलन का निर्माण है। भारत अब ग्रीस, फ्रांस, इज़रायल और साइप्रस के साथ एक अनौपचारिक 'भूमध्य धुरी' बना रहा है, जो भारतीय हितों के लिए पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच एक स्थिर सेतु का काम करेगी।
EU-India FTA पर बातचीत
भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते (EU-India FTA) पर बातचीत अंतिम चरण में है। साइप्रस इस समझौते का एक प्रमुख समर्थक है। यदि यह समझौता 2025 तक पूरा होता है, तो यह भारत को यूरोप के बाजारों तक तेज़ और सुलभ पहुँच प्रदान करेगा।
सामरिक महत्व
भारत पहले ही IMEC में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जो चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विकल्प माना जा रहा है। साइप्रस इस परियोजना के यूरोपीय छोर के रूप में भारत के लिए एक रणनीतिक डॉमिनो पॉइंट बन सकता है।
नए बहुध्रुवीय युग में भारत
विश्व अब एक नए बहुध्रुवीय युग में प्रवेश कर चुका है, जहाँ शक्ति एकध्रुवीय या द्विध्रुवीय नहीं रही। भारत और साइप्रस की मित्रता उस वैचारिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है जो सहयोग में विश्वास रखता है।
गुटनिर्माण की दिशा में भारत
भारत की विदेश नीति अब केवल 'गुटनिरपेक्षता' नहीं, बल्कि 'गुटनिर्माण' की दिशा में बढ़ रही है। साइप्रस के साथ गहराते संबंध इसी प्रवृत्ति का उदाहरण हैं। यह मित्रता भारत की स्वतंत्र और आत्मनिर्भर विदेश नीति की परिपक्वता का प्रमाण है।
