भारत की कूटनीतिक विफलता: पाकिस्तान की तुलना में हमारी स्थिति
भारत की कूटनीतिक स्थिति पर चिंतन
हमने विश्वगुरु बनने का दावा किया था, लेकिन आज दुनिया हमें पाकिस्तान के साथ तुलना कर रही है। इससे अधिक अपमानजनक स्थिति और क्या हो सकती है?
कूटनीतिक मोर्चे पर यह हमारी सबसे बड़ी विफलता है। हमारी यह दुर्दशा इस कारण हुई है कि हम वैश्विक समुदाय को यह विश्वास दिलाने में असफल रहे हैं कि हमारी लड़ाई आतंकवादियों के खिलाफ है।
दुनिया ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को भारत द्वारा आतंकियों के पाकिस्तान स्थित ठिकानों को समाप्त करने की कार्रवाई के रूप में नहीं देखा, बल्कि इसे भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष के रूप में देखा।
मुझे चिंता है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पिछले 25 दिनों में भारतीय नागरिकों का सामना राजनीतिक दल द्वारा सिंदूर के वितरण कार्यक्रम से हुआ है, जिसका दीर्घकालिक प्रभाव देश के मानस पर क्या पड़ेगा? अब जब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को पाठ्यक्रम में शामिल करने की बात हो रही है, तो मुझे भावी पीढ़ियों पर इसके प्रभाव की चिंता सताने लगी है।
इन तीन-साढ़े तीन हफ्तों में एक नया इतिहास बना है - सेना के साहस का, सकारात्मक सामुदायिक विचारशीलता का, राजनीतिक प्रचार का, और कूटनीतिक विफलताओं का। सवाल उठाने पर राष्ट्रद्रोही करार दिए जाने का चलन अपने चरम पर है।
17 साल पहले, 26 नवंबर 2008 को मुंबई में आतंकवादी हमला हुआ था। 27 की सुबह एनएसजी ने ऑपरेशन शुरू किया। नरेंद्र मोदी 28 नवंबर को होटल ओबेरॉय के बाहर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पहुंचे। उस समय सवाल उठाना सही था, लेकिन आज पहलगाम पर हमले के सवा महीने बाद भी सवाल पूछने वालों को देशद्रोही बताया जा रहा है।
1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी। उस समय नेहरू ने उनकी बात को गंभीरता से लिया। आज, मौजूदा प्रधानमंत्री विपक्ष की हर उचित बात को नजरअंदाज कर रहे हैं।
पिछले 11 वर्षों में नरेंद्र मोदी ने जो बीज भारत की सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक धरती में बोए हैं, उनके कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचा है।
डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार कहा है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के संघर्ष को रोका। इस कूटनीतिक स्थिति में भारत ने विरोध किया, जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को अरबों का कर्ज दिया।
अगर प्रधानमंत्री जी को सर्वदलीयता में विश्वास होता, तो भारत आज एक अलग स्थिति में होता। लेकिन वे एकल-व्यक्तिवादी हैं और अपनी पार्टी के सहयोगियों को भी विश्वास में नहीं लेते। यही कारण है कि देश पिछले 11 वर्षों से समस्याओं का सामना कर रहा है।
