भारत की भूराजनीति: पुतिन, ट्रंप और शी जिनपिंग के साथ मोदी की भूमिका
भारत की भूराजनीति में मोदी की भूमिका
दिसंबर में पुतिन, जनवरी में ट्रंप और शी जिनपिंग के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकातें भारत की भूराजनीति को नया मोड़ दे सकती हैं। इन तीनों वैश्विक नेताओं के लिए मोदी का महत्व इस कारण है कि भारत एक बड़ा उपभोक्ता बाजार है। यहां हर प्रकार के उत्पाद, चाहे वो चीन के सस्ते सामान हों या रूस के हथियार, की मांग है। अमेरिका की कंपनियों जैसे मैकडोनाल्ड, केएफसी और पेप्सी भी भारतीय बाजार में अपनी जगह बना चुकी हैं।
इसलिए, जो विशेषज्ञ पुतिन की यात्रा को भूराजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मानते हैं, वे गलत हैं। असल में, पुतिन केवल भारत से व्यापार करने आएंगे। भारत-रूस के संबंधों का सामरिक महत्व अब पहले जैसा नहीं रहा।
जब सोवियत संघ और चीन के बीच तनाव था, तब भी भारत को सोवियत संघ से मदद नहीं मिली थी। आज, रूस की स्थिति यूक्रेन युद्ध के कारण कमजोर है, और यदि चीन ने भारत के अरुणाचल प्रदेश पर हमला किया, तो क्या पुतिन भारत की मदद के लिए आएंगे?
दक्षिण एशिया में चीन की बढ़ती ताकत के बीच, रूस अब भारत का सहयोगी नहीं बल्कि चीन का साथी बन चुका है। लेकिन भारत के लिए रूस का महत्व इसलिये बढ़ गया है क्योंकि वह रूस से तेल और हथियार खरीदता है। इस व्यापार से रूस को लाभ होता है और भारत भी वैश्विक मंचों पर रूस का समर्थन करता है।
अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप भारत के बाजार को अपने हिसाब से ढालने की कोशिश कर रहे हैं। तथ्य यह है कि रूस और चीन भारत में अधिक लाभ कमा रहे हैं, जबकि अमेरिका हमेशा घाटे में रहा है। ट्रंप का ध्यान भारत को झुकाने पर है। हालांकि, मोदी सरकार ट्रंप प्रशासन के साथ समझौता कर सकती है, जिससे यह दिखाया जा सके कि मोदी ने ट्रंप को पुतिन के माध्यम से मजबूर किया।
इस सब के बीच, चीन और शी जिनपिंग को सबसे अधिक लाभ होगा। 2025 का वर्ष इतिहास में चीन के अमेरिका के बराबर आने का वर्ष माना जाएगा। ट्रंप की नीतियों ने चीन को एक महाशक्ति बना दिया है। और भारत, चीन, रूस और अमेरिका का एक कैप्टिव बाजार बन चुका है।
