Newzfatafatlogo

भारत के 15वें उपराष्ट्रपति बने CP Radhakrishnan: जानें चुनाव की पूरी कहानी

भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में CP Radhakrishnan की जीत ने राजनीतिक हलचल मचा दी है। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद हुए इस चुनाव में राधाकृष्णन ने 452 वोट प्राप्त किए, जबकि उनके प्रतिद्वंदी सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट मिले। इस चुनाव ने न केवल एनडीए के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत दिया है, बल्कि आने वाले समय में राज्यसभा में उनकी भूमिका को भी महत्वपूर्ण बना दिया है। जानें इस चुनाव की पूरी कहानी और इसके पीछे की रणनीतियाँ।
 | 
भारत के 15वें उपराष्ट्रपति बने CP Radhakrishnan: जानें चुनाव की पूरी कहानी

CP Radhakrishnan का उपराष्ट्रपति पद पर चुनाव

CP Radhakrishnan 15वें उपराष्ट्रपति बने: जगदीप धनखड़ के अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफे ने भारतीय राजनीति में हलचल पैदा कर दी थी। इस अप्रत्याशित घटनाक्रम ने न केवल राजनीतिक हलकों में, बल्कि आम जनता में भी उपराष्ट्रपति पद के प्रति गहरी रुचि जगाई। लंबे समय से चल रही अटकलों और संभावित उम्मीदवारों की चर्चा के बाद, अब भारत को अपना 15वां उपराष्ट्रपति मिल गया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन ने इस महत्वपूर्ण पद पर भारी बहुमत से जीत हासिल की है। वहीं, विपक्षी गठबंधन यूपीए (UPA) के उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी को हार का सामना करना पड़ा।


इस चुनाव में कुल 767 सांसदों ने मतदान किया, जिसमें से 452 सांसदों ने राधाकृष्णन के पक्ष में वोट दिया, जबकि सुदर्शन रेड्डी को 300 मत मिले। इस प्रकार, राधाकृष्णन ने 152 मतों के बड़े अंतर से जीत हासिल की। चुनाव प्रक्रिया में 15 वोट अमान्य रहे, और 13 सांसदों ने मतदान से दूरी बनाई। इनमें बीजेडी के 7, बीआरएस के 4, एक अकाली दल का सांसद और एक निर्दलीय सांसद शामिल थे। उल्लेखनीय है कि संसद में कुल 788 सीटें हैं, जिनमें से 7 सीटें फिलहाल खाली हैं। इसलिए उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए 781 सांसदों के वोट डालने की उम्मीद थी।


सी.पी. राधाकृष्णन की यह जीत एनडीए के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संकेत है, और आने वाले समय में राज्यसभा में उनकी भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होने वाली है, क्योंकि उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति भी होते हैं। राधाकृष्णन की साफ-सुथरी छवि, अनुशासित राजनीतिक जीवन और वरिष्ठ नेतृत्व में विश्वास रखने के कारण एनडीए समर्थकों में उत्साह है, जबकि विपक्ष के लिए यह हार एक बार फिर रणनीति पर पुनर्विचार का संकेत देती है।