भारत के उपराष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग की स्वतंत्रता

भारत के 15वें उपराष्ट्रपति का चुनाव
आज, 9 सितंबर 2025 को भारत के 15वें उपराष्ट्रपति पद के लिए मतदान हो रहा है। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफे के बाद, यह चुनाव एनडीए और विपक्षी गठबंधन के बीच एक महत्वपूर्ण मुकाबला बन गया है। एनडीए ने सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाया है, जबकि विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी सुदर्शन रेड्डी पर भरोसा जताया है। इस चुनाव से जुड़े कई सवाल उठ रहे हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि क्या कोई दल का सदस्य दूसरे दल के उम्मीदवार को वोट दे सकता है। आइए, इसके नियमों को विस्तार से समझते हैं.
उपराष्ट्रपति चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल द्वारा अपने सांसदों पर व्हिप लागू नहीं किया जा सकता। इसका अर्थ है कि सांसदों को वोटिंग के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह चुनाव किसी पार्टी के चिन्ह पर नहीं लड़ा जाता, इसलिए व्हिप का प्रावधान यहां लागू नहीं होता.
वोटिंग की स्वतंत्रता: क्रॉस वोटिंग का विकल्प
इस चुनाव में सांसदों को वोट देने की पूरी स्वतंत्रता है। उदाहरण के लिए, एक बीजेपी सांसद कांग्रेस या विपक्ष के उम्मीदवार को वोट दे सकता है, और इसी तरह विपक्षी सांसद एनडीए के उम्मीदवार को समर्थन दे सकता है। इस प्रकार के कदम के लिए किसी सांसद के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती, जिससे क्रॉस वोटिंग के मामले आम हैं.
दल-बदल कानून से छूट
चूंकि उपराष्ट्रपति चुनाव पार्टी चिन्ह से परे है, इसलिए क्रॉस वोटिंग करने वाले सांसदों पर दल-बदल कानून लागू नहीं होता। हालांकि, पार्टी अपने आंतरिक नियमों के तहत ऐसे सांसदों को कारण बताओ नोटिस जारी कर सकती है, लेकिन कानूनी रूप से कोई सजा नहीं दी जा सकती। यह चुनाव न केवल नेतृत्व का निर्णय करेगा, बल्कि सांसदों की स्वतंत्रता और रणनीति को भी परखेगा.