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भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: स्वास्थ्य या राजनीतिक दबाव?

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में अपने पद से इस्तीफा दिया, जिसका कारण उन्होंने अपनी बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति बताया। यह घटना केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं है, बल्कि यह आज की राजनीति में बढ़ते तनाव और जिम्मेदारियों का भी संकेत है। क्या यह इस्तीफा स्वास्थ्य का मामला है या राजनीतिक तंत्र के भीतर की एक अनकही कहानी? जानें इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम के पीछे की सच्चाई।
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उपराष्ट्रपति का इस्तीफा और उसके पीछे की कहानी

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में अपने पद से इस्तीफा देने का निर्णय लिया। यह केवल एक संवैधानिक पद छोड़ने का मामला नहीं है, बल्कि यह उस दबाव और तनाव का संकेत भी है जो आज की राजनीति में शीर्ष नेताओं को झेलना पड़ता है। उन्होंने 21 जुलाई को अपने इस्तीफे की घोषणा की, जिसमें उन्होंने अपनी बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति को कारण बताया।


हालांकि, यह सवाल उठता है कि क्या यह केवल स्वास्थ्य का मामला है या फिर यह राजनीतिक तंत्र के भीतर की एक अनकही कहानी है। धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना त्यागपत्र सौंपते हुए कहा कि यह निर्णय उन्होंने डॉक्टरों की सलाह पर लिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें अब अपनी सेहत पर ध्यान देने की आवश्यकता है और इसी कारण से वे तत्काल प्रभाव से पद छोड़ रहे हैं।


इस घोषणा के साथ ही देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर एक असमय रिक्तता उत्पन्न हो गई है, जिससे राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है।


मार्च 2025 में, उपराष्ट्रपति को अचानक सीने में दर्द की शिकायत के बाद दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था। उन्हें क्रिटिकल केयर यूनिट में रखा गया और वरिष्ठ डॉक्टरों की देखरेख में इलाज किया गया। हालांकि, उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई, लेकिन उनकी सेहत पूरी तरह से सामान्य नहीं हो पाई।


सूत्रों के अनुसार, वे लंबे समय से हृदय संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे, और उन्हें नैनीताल में भी आपात चिकित्सा की आवश्यकता पड़ी। हालांकि, अब तक कोई आधिकारिक मेडिकल बुलेटिन जारी नहीं हुआ है, जिससे उनकी बीमारी के असली स्वरूप पर चुप्पी बनी हुई है।


यह घटना केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं है, बल्कि यह सत्ता के ऊंचे गलियारों में बढ़ते तनाव और जिम्मेदारियों की कीमत का भी एक उदाहरण है। उपराष्ट्रपति का कार्यभार केवल प्रतीकात्मक नहीं होता; वे राज्यसभा के सभापति होते हैं और राजनीतिक असहमति के बीच संयम बनाए रखना उनका कर्तव्य होता है। ऐसे में लगातार मानसिक और शारीरिक दबाव उनके स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है।


विशेषज्ञों का मानना है कि आज की राजनीति में स्वस्थ रहने की चुनौती पहले से कहीं अधिक कठिन हो गई है। सोशल मीडिया से लेकर संसद तक, हर जगह असहमति का स्वर और दबाव बढ़ा है, जो एक व्यक्ति की सहनशक्ति पर सीधा असर डालता है।