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भारत-चीन सीमा व्यापार का पुनरारंभ, नेपाल ने जताया विरोध

भारत और चीन ने लिपुलेख दर्रे के माध्यम से सीमा व्यापार को फिर से शुरू करने का निर्णय लिया है, जो 1954 से जारी था। हालांकि, नेपाल ने इस पर कड़ा विरोध जताया है, claiming that these areas are integral parts of its territory. भारत ने नेपाल के दावों को निराधार बताया है। इस निर्णय से द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की उम्मीद है। जानें इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम के बारे में और क्या है नेपाल की प्रतिक्रिया।
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भारत-चीन सीमा व्यापार का पुनरारंभ, नेपाल ने जताया विरोध

भारत-चीन व्यापार संबंधों में नई शुरुआत

भारत-चीन व्यापार: भारत और चीन ने लिपुलेख दर्रे के माध्यम से लंबे समय से रुका हुआ सीमा व्यापार फिर से शुरू करने पर सहमति व्यक्त की है। यह महत्वपूर्ण निर्णय 18 और 19 अगस्त को चीनी विदेश मंत्री वांग यी के भारत दौरे के दौरान लिया गया। इस समझौते के बाद शिपकी ला और नाथु ला दर्रों से भी व्यापार को हरी झंडी मिलने की उम्मीद है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बताया कि भारत-चीन के बीच इस मार्ग से 1954 से व्यापार होता आ रहा है, लेकिन कोरोना महामारी और अन्य कारणों से हाल के वर्षों में यह रुक गया था.


नेपाल की कड़ी प्रतिक्रिया

हालांकि, नेपाल ने इस कदम पर कड़ा विरोध जताया है। नेपाल सरकार का कहना है कि लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा उसके अभिन्न हिस्से हैं और इन्हें आधिकारिक नक्शे और संविधान में शामिल किया गया है.


भारत की स्पष्ट प्रतिक्रिया

नेपाल के इस दावे पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि नेपाल का रुख न तो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है और न ही साक्ष्यों पर। भारत ने स्पष्ट किया कि दशकों से इस मार्ग से व्यापार होता आ रहा है और नेपाल की आपत्ति अनुचित है.


नेपाल की आपत्ति और भारत का स्पष्टीकरण

नेपाल ने 20 अगस्त को एक आधिकारिक बयान जारी कर कहा कि महाकाली नदी के पूर्व में स्थित क्षेत्र नेपाल का अभिन्न अंग है। इस पर भारत ने दो टूक कहा कि ऐसे दावे निराधार हैं और ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत हैं। भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह व्यापार मार्ग दशकों से सक्रिय रहा है और इसे दोबारा शुरू करना दोनों देशों के हित में है.


चीनी विदेश मंत्री का भारत दौरा

चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने अपने भारत दौरे के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की। इन बैठकों के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों पक्ष लिपुलेख, शिपकी ला और नाथु ला दर्रों के जरिए व्यापार को पुनः शुरू करने पर सहमत हुए हैं। यह फैसला न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगा, बल्कि सीमा क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ावा देगा.