Newzfatafatlogo

भारत बंद: 25 करोड़ श्रमिकों की भागीदारी से होगा ऐतिहासिक हड़ताल

बुधवार को भारत में एक बार फिर से व्यापक स्तर पर भारत बंद का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें 25 करोड़ से अधिक श्रमिकों के शामिल होने की संभावना है। यह हड़ताल केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ है, जिन्हें ट्रेड यूनियनें मजदूर और किसान विरोधी मानती हैं। बैंकिंग, बीमा, और परिवहन सेवाओं पर इसका प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। ट्रेड यूनियनों ने पिछले कई महीनों से इस हड़ताल की तैयारी की है और इसे सफल बनाने का आह्वान किया है। जानें इस हड़ताल के पीछे की वजहें और इसके संभावित परिणाम।
 | 
भारत बंद: 25 करोड़ श्रमिकों की भागीदारी से होगा ऐतिहासिक हड़ताल

भारत बंद का व्यापक असर

भारत बंद: बुधवार को देशभर में एक बार फिर भारत बंद का प्रभाव देखने को मिल सकता है। 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मोर्चे द्वारा आयोजित इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल में 25 करोड़ से अधिक श्रमिकों के शामिल होने की उम्मीद है। इसका उद्देश्य केंद्र सरकार की उन नीतियों का विरोध करना है, जिन्हें यूनियनें मजदूर, किसान और राष्ट्र विरोधी मानती हैं।


महत्वपूर्ण सेवाओं पर पड़ेगा असर

इस हड़ताल का प्रभाव बैंकिंग, बीमा, डाक सेवाएं, कोयला खनन और राज्य परिवहन जैसी महत्वपूर्ण सेवाओं पर पड़ सकता है। ट्रेड यूनियनें पिछले कुछ महीनों से इस हड़ताल की तैयारी कर रही थीं और इसे सफल बनाने का आह्वान किया है।


हड़ताल में शामिल होने की उम्मीद

25 करोड़ कर्मचारियों के हड़ताल में शामिल होने की उम्मीद

अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की अमरजीत कौर ने कहा, "हड़ताल को सफल बनाने के लिए व्यापक स्तर पर तैयारी की गई है। 25 करोड़ से ज्यादा श्रमिक इसमें भाग लेंगे। देशभर में किसान और ग्रामीण मजदूर भी इस आंदोलन में शामिल होंगे।" हिंद मजदूर सभा के हरभजन सिंह सिद्धू ने बताया कि इस हड़ताल का सबसे अधिक असर बैंकिंग, डाक सेवाएं, कोयला खनन, फैक्ट्रियों और राज्य परिवहन सेवाओं पर देखने को मिलेगा।


17 सूत्रीय मांगपत्र का विवाद

17 सूत्रीय मांगपत्र बना विवाद की जड़

ट्रेड यूनियनों ने श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया को पिछले वर्ष 17 मांगों का एक चार्टर सौंपा था। यूनियन नेताओं का आरोप है कि सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और पिछले दस वर्षों से वार्षिक श्रमिक सम्मेलन तक नहीं बुलाया गया, जो श्रमिकों के प्रति सरकार की उदासीनता को दर्शाता है।


श्रम संहिता पर श्रमिक संगठनों की नाराजगी

श्रम संहिता पर भड़के श्रमिक संगठन

संयुक्त फोरम के अनुसार, सरकार की चार नई श्रम संहिताएं श्रमिकों के अधिकारों को छीनने और ट्रेड यूनियनों की ताकत को कमजोर करने के लिए लाई गई हैं। इनका उद्देश्य सामूहिक सौदेबाजी को समाप्त करना, यूनियनों की गतिविधियों को बाधित करना, काम के घंटे बढ़ाना और मालिकों को श्रम कानूनों से बचाव देना है।


निजीकरण और ठेकेदारी नीति का विरोध

निजीकरण और ठेकेदारी नीति का विरोध

ट्रेड यूनियनों का कहना है कि वे लंबे समय से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सेवाओं के निजीकरण, आउटसोर्सिंग, ठेकेदारी और अस्थायीकरण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। उनके अनुसार, चारों श्रम संहिताएं न केवल श्रमिक अधिकारों को खत्म करती हैं, बल्कि हड़ताल का अधिकार भी छीन लेती हैं।


किसान संगठनों का समर्थन

किसान संगठनों का भी मिला समर्थन

संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि मजदूर यूनियनों ने इस हड़ताल को समर्थन देने का ऐलान किया है। यूनियन नेताओं के अनुसार, ग्रामीण भारत में बड़े पैमाने पर रैलियां और प्रदर्शन किए जाएंगे। यह उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी ट्रेड यूनियनें 26 नवंबर 2020, 28-29 मार्च 2022 और 16 फरवरी 2024 को देशव्यापी हड़ताल कर चुकी हैं।