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भारत बंद: केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का बड़ा आंदोलन, किसानों का समर्थन

9 जुलाई को 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने एक राष्ट्रव्यापी भारत बंद का आह्वान किया है, जिसमें किसानों का समर्थन भी शामिल है। यह हड़ताल केंद्र सरकार के कॉर्पोरेट समर्थक सुधारों के खिलाफ है, जो श्रमिकों की सुरक्षा को कमजोर कर रहे हैं। यूनियनों की प्रमुख मांगों में चार श्रम संहिताओं को वापस लेना, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण रोकना और न्यूनतम मजदूरी की गारंटी शामिल हैं। इस बंद से कई आवश्यक सेवाओं के बाधित होने की संभावना है। जानें इस आंदोलन के पीछे की पूरी कहानी और क्या सेवाएं प्रभावित होंगी।
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भारत बंद: केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का बड़ा आंदोलन, किसानों का समर्थन

भारत बंद का आह्वान

9 जुलाई को 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने एक राष्ट्रव्यापी भारत बंद का आह्वान किया है, जिसमें किसान संगठनों का समर्थन भी शामिल है। आयोजकों का कहना है कि यह हड़ताल केंद्र सरकार के 'कॉर्पोरेट समर्थक' सुधारों के खिलाफ है, जो श्रमिकों की सुरक्षा को कमजोर कर रहे हैं, किसानों की अनदेखी कर रहे हैं और असमानता को बढ़ा रहे हैं। इस बंद के चलते कई क्षेत्रों में सार्वजनिक सेवाओं के बाधित होने की संभावना है, जिसमें औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों के 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी शामिल हो सकते हैं। औद्योगिक केंद्रों, ग्रामीण इलाकों और राज्य की राजधानियों में विरोध प्रदर्शन की उम्मीद है, जिससे कई आवश्यक सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं।


हड़ताल का नेतृत्व करने वाले संगठन

यह हड़ताल 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके महासंघों द्वारा आयोजित की जा रही है:

1. अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी)
2. भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक)
3. भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र (सीआईटीयू)
4. हिंद मजदूर सभा (एचएमएस)
5. अखिल भारतीय संयुक्त ट्रेड यूनियन केंद्र (AIUTUC)
6. स्व-रोजगार महिला एसोसिएशन (SEWA)
7. अखिल भारतीय केंद्रीय ट्रेड यूनियन परिषद (AICCTU)
8. ट्रेड यूनियन समन्वय केंद्र (टीयूसीसी)
9. लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन (एलपीएफ)
10. यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (यूटीयूसी)


यूनियनों के विरोध के कारण

ये यूनियनें चार नई श्रम संहिताओं का विरोध कर रही हैं, जिनका आरोप है कि ये श्रमिकों की सुरक्षा को कमजोर करती हैं, काम के घंटों को वैध बनाती हैं, और हड़तालों तथा सामूहिक सौदेबाजी को कठिन बनाती हैं। इसके अलावा, उन्होंने सरकार पर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करने और बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई और सामाजिक सुरक्षा तंत्र के क्षरण की अनदेखी करने का भी आरोप लगाया है।


हड़ताली यूनियनों की प्रमुख मांगें

ट्रेड यूनियनों ने केंद्रीय श्रम मंत्री को 17 सूत्री मांगपत्र सौंपा था, जिसमें प्रमुख मांगें शामिल हैं:

  • चार श्रम संहिताओं को वापस लिया जाए
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सेवाओं के निजीकरण पर रोक
  • न्यूनतम मजदूरी की गारंटी और सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा
  • ठेकेदारी प्रथा पर प्रतिबंध और स्थायी नौकरियों पर जोर
  • भारतीय श्रम सम्मेलन की बहाली
  • स्वास्थ्य, शिक्षा और लोक कल्याण में अधिक निवेश

यूनियन नेताओं का कहना है कि केंद्र ने औपचारिक वार्ता के सभी तंत्रों को दरकिनार कर दिया है और महत्वपूर्ण सुधारों को बिना चर्चा के लागू कर रहा है।


9 जुलाई को प्रभावित सेवाएं

हड़ताल से कई आवश्यक सेवाएं बाधित होने की संभावना है, विशेषकर उन राज्यों में जहां ट्रेड यूनियनों की मजबूत उपस्थिति है:

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और बीमा कंपनियां
  • कोयला और खनिज खनन कार्य
  • डाक सेवाएं
  • राज्य संचालित बस परिवहन
  • बुनियादी ढांचा और निर्माण स्थल

झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और ओडिशा के औद्योगिक क्षेत्रों में कामकाज प्रभावित हो सकता है। हालांकि भारतीय रेलवे औपचारिक रूप से हड़ताल का हिस्सा नहीं है, लेकिन यूनियन नेताओं ने सड़क अवरोधों और प्रमुख जंक्शनों पर देरी की चेतावनी दी है।


क्या सेवाएं सामान्य रहेंगी?

विरोध प्रदर्शन के बावजूद, कई सेवाएं सामान्य रूप से चलती रहेंगी:

  • स्कूल और कॉलेज, जब तक कि स्थानीय प्राधिकारियों द्वारा बंद न कर दिए जाएं
  • निजी कार्यालय और आईटी फर्म
  • अस्पताल और आपातकालीन सेवाएं
  • रेलवे परिचालन, हालांकि मामूली देरी संभव है

किसान संगठनों ने भी इस बंद का समर्थन किया है, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी, बढ़ती इनपुट लागत और कृषि बाजारों के निजीकरण के खिलाफ हैं।


सरकार की प्रतिक्रिया

श्रम मंत्रालय ने बंद से पहले कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन अधिकारियों ने कहा है कि चार श्रम संहिताओं का उद्देश्य अनुपालन को सुव्यवस्थित करना और रोजगार को औपचारिक बनाना है। सरकार का तर्क है कि ये सुधार 'लंबे समय से लंबित' थे। हालांकि, यूनियनों का कहना है कि इस मामले में कोई वास्तविक परामर्श नहीं हुआ है।