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भारत में जाति गणना: नीतीश कुमार की रणनीति और भाजपा की चुनौती

भारत सरकार जाति गणना कराने की योजना बना रही है, जो बिहार में नीतीश कुमार की रणनीति से प्रेरित है। इस प्रक्रिया से जातियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और भाजपा की राजनीतिक स्थिति पर प्रभाव पड़ेगा। जानें कैसे यह जातीय ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकता है और हिंदू एकता की संभावनाओं को कम कर सकता है।
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भारत में जाति गणना: नीतीश कुमार की रणनीति और भाजपा की चुनौती

जाति गणना की आवश्यकता

भारत सरकार जाति गणना कराने की योजना बना रही है, जैसा कि बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की सरकार ने किया था। नीतीश कुमार ने पहले से ही भाजपा के साथ मिलकर कर्पूरी ठाकुर के सिद्धांत पर कार्य किया है। उन्होंने पिछड़ों को दो श्रेणियों में बांटा है: पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग, जबकि दलितों को दलित और महादलित वर्ग में विभाजित किया गया है। बिहार में पासवान पूरी तरह से रामविलास पासवान के साथ जुड़े हुए हैं, और नीतीश सरकार ने उन्हें दलित वर्ग में रखा है, जबकि अन्य दलित जातियों को महादलित वर्ग में शामिल किया गया है। इसी आधार पर बिहार में जातियों की गणना की गई है।


जातियों की जनसंख्या का विश्लेषण

जाति गणना के अनुसार, पिछड़े वर्ग की जनसंख्या 27 प्रतिशत है, जिसमें पिछड़े मुस्लिम भी शामिल हैं, और अति पिछड़े वर्ग की जनसंख्या 36 प्रतिशत है। दलितों की आबादी 20 प्रतिशत और सवर्णों की 15 प्रतिशत है, जिसमें लगभग 5 प्रतिशत मुस्लिम हैं। बिहार में जातियों की गणना के आंकड़ों के अनुसार, केवल तीन जातियां हैं जिनकी जनसंख्या 5 प्रतिशत से अधिक है: यादव, पासवान और चमार। अति पिछड़ों में केवल दो जातियां हैं जिनकी जनसंख्या 2 प्रतिशत से अधिक है।


नीतीश कुमार की रणनीति

नीतीश कुमार ने जातियों की संख्या बताकर उनके बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया है, जिससे पार्टियों को टिकट वितरण में विविधता लानी पड़ रही है। इस प्रक्रिया ने बिहार में हिंदू एकता की संभावनाओं को कम कर दिया है। नीतीश ने भाजपा को एक बड़ी ताकत बनने से रोका है, जिससे भाजपा पूरी तरह से नीतीश और उनकी पार्टी जनता दल यू पर निर्भर हो गई है।


जाति गणना का राष्ट्रीय प्रभाव

ऐसा प्रतीत होता है कि नरेंद्र मोदी ने जाति गणना कराने का निर्णय लिया है ताकि देश के अन्य हिस्सों में प्रादेशिक क्षत्रपों की राजनीति को नियंत्रित किया जा सके। जातियों की गणना से न केवल उनका विभाजन बढ़ेगा, बल्कि जातियों का सामाजिक ध्रुवीकरण भी हो सकता है। इससे जातियां सत्ता की संरचना में अपनी जगह बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा करेंगी, जिससे हिंदू एकता के प्रयासों की संभावना कम हो जाएगी।


भाजपा की रणनीति

भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कई जातियों के महापुरुषों को स्थापित कर उनके माध्यम से जातियों की पहचान और सामाजिक पूंजी बनाई है। उत्तर प्रदेश में राजभर समाज इसका एक उदाहरण है। राजा सुहेलदेव को स्थापित कर उनकी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने एक ताकतवर राजनीतिक इकाई बना ली है। बिहार में भी कई जातीय नेता भाजपा के साथ हैं।


भविष्य की चुनौतियाँ

सवाल यह है कि क्या भाजपा और संघ जातियों को और अधिक विभाजित करके उनके विरोधाभासों को सुलझा पाएंगे? यदि सत्ता में रहते हैं, तो यह संभव है, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं हो सकता। यह सामाजिक स्तर पर सदियों से बनी हिंदू एकता का विकल्प नहीं हो सकता।