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भारत में मीडिया और सत्ता का खतरनाक गठजोड़: एक गंभीर विश्लेषण

इस लेख में भारत में मीडिया और सत्ता के बीच के खतरनाक गठजोड़ का विश्लेषण किया गया है। यह बताया गया है कि कैसे मीडिया ने जनता के मुद्दों को नजरअंदाज किया है और सत्ता के साथ मिलकर अघोषित आपातकाल की स्थिति पैदा की है। क्या यह स्थिति 1975 के आपातकाल से भी बदतर है? जानें इस गंभीर विषय पर और अधिक जानकारी के लिए लेख पढ़ें।
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मीडिया और सत्ता का संबंध

अगर आप सजग नहीं रहे, तो सत्ता और मीडिया का खतरनाक गठजोड़ आपको नफरत की ओर ले जा सकता है। मीडिया आपको शोषक के प्रति सहानुभूति दिला सकता है और शोषित को अपराधी बना सकता है। 2014 के बाद से, भारत के मुख्यधारा के मीडिया ने सत्ता के साथ मिलकर यही किया है। मीडिया ने अघोषित आपातकाल, अन्याय, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और शर्म जैसे मुद्दों को गौरव का विषय बना दिया है। यह स्थिति 1975 के आपातकाल की याद दिलाती है, जिसका समर्थन उन लोगों ने किया था, जो आज फर्जी राष्ट्रवाद का ढोंग कर रहे हैं।


जनता के प्रति जवाबदेही न होना, 11 वर्षों में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस न करना, और उत्तर प्रदेश तथा बिहार में नौकरी की मांग कर रहे छात्रों पर बर्बर लाठीचार्ज करना, क्या यह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है? मीडिया के मालिकों को खरीद लेना और जनता के मुद्दों को गायब कर देना, इसे किस श्रेणी में रखा जाए? क्या यह केवल 1975 के आपातकाल पर चर्चा का विषय है, या 11 वर्षों से चल रहे अघोषित आपातकाल पर भी?


सत्ता के लिए नागरिकों को आपस में लड़ाना और हेट स्पीच पर एकतरफा कार्रवाई करना, क्या इसे अघोषित आपातकाल नहीं माना जाना चाहिए? न्यायिक व्यवस्था को ध्वस्त करना और रिटायर्ड जजों को लालच या धमकी देकर पद पर रखना, यह किस प्रकार की आपातकालीन स्थिति है? निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता का शून्य होना और वोटर लिस्ट में गड़बड़ियां करना, क्या इसे आपातकाल का नाम नहीं दिया जा सकता?


मीडिया के साथ विदेशी दौरों की जानकारी साझा करना बंद हो जाना और केवल गाने-बजाने में व्यस्त रहना, क्या इसे आपातकाल की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता? यूट्यूब चैनलों पर पत्रकारों को ब्लॉक करना और ईडी, सीबीआई जैसी एजेंसियों का सत्ता बनाए रखने में उपयोग होना, यह किस प्रकार का आपातकाल है? विकास के नाम पर जंगलों का कटाव और लोगों की जमीनों का बलात अधिग्रहण, क्या यह आपातकाल का संकेत नहीं है?


हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई कि लाखों बेगुनाह जेलों में हैं। यह स्थिति क्या दर्शाती है? एनडीटीवी के मालिक पर सरकार के इशारे पर केस दर्ज होना और फिर जांच का होना, क्या यह आपातकाल का संकेत नहीं है? यदि प्रणव राय दोषी थे, तो उन्हें क्यों छोड़ा गया? यदि वे निर्दोष थे, तो यह सब क्यों हुआ?


1975 के आपातकाल से सबसे ज्यादा नाराज कौन था? क्या आम आदमी को कोई दिक्कत थी? जमींदार और सामंतवादी परेशान थे, क्योंकि उनके प्रभाव में कमी आई थी। अब यह तय करना है कि घोषित आपातकाल सही था या अघोषित आपातकाल।