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भारत में वित्तीय विषमता: एलायंज ग्रुप की चेतावनी

एलायंज ग्रुप की नई रिपोर्ट में भारत में वित्तीय विषमता की गंभीरता को उजागर किया गया है। जबकि औसत आय में वृद्धि हो रही है, वहीं ऋण अनुपात में भी वृद्धि हो रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे 2004 से अब तक सबसे धनी 10 प्रतिशत भारतीयों के पास धन का हिस्सा बढ़ा है। क्या यह वृद्धि समता और वितरण संबंधी न्याय के साथ संतुलित हो पाएगी? जानें पूरी कहानी में।
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भारत में वित्तीय विषमता: एलायंज ग्रुप की चेतावनी

वित्तीय अर्थव्यवस्था में बढ़ती विषमता

एक छोटा सा हिस्सा जो वित्तीय अर्थव्यवस्था से जुड़ा है, उसकी स्थिति में सुधार हुआ है। हालांकि, विषमता इतनी तेजी से बढ़ी है कि जर्मन बहुराष्ट्रीय कंपनी एलायंज ग्रुप ने इस पर चिंता जताई है।


पहले सकारात्मक पहलू पर ध्यान दें: 2024 में भारतीय परिवारों की औसत आय में वृद्धि की गति तेज हुई है। कुल मिलाकर, 14.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इस धन वृद्धि में सबसे बड़ा योगदान प्रतिभूतियों में निवेश का रहा है, जो कुल आय का 28.7 प्रतिशत है। बीमा और पेंशन फंड में निवेश से प्राप्त आय का हिस्सा 19.7 प्रतिशत रहा। मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए, वित्तीय संपत्तियों में वृद्धि 9.4 प्रतिशत रही। इन सभी आयों के चलते, कोरोना महामारी के बाद भारत में औसत क्रय शक्ति में 40 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। हालांकि, यदि हम आगे की स्थिति पर ध्यान दें, तो एलायंज ग्रुप की रिपोर्ट में ये आंकड़े भारत में बढ़ती खुशहाली की कहानी बताते हैं। लेकिन आगे देखने पर स्थिति बदल जाती है।


उदाहरण के लिए, भारतीय परिवारों का ऋण अनुपात बढ़कर 41 प्रतिशत हो गया है, जो पिछले एक दशक में 8 प्रतिशत अधिक है। एक ओर तेजी से बढ़ती आय है, जबकि दूसरी ओर कर्ज का बढ़ता बोझ आर्थिक विषमता को पिछले साल नए स्तर पर ले गया है। एलायंज ग्रुप के अनुसार, 2004 में सबसे धनी 10 प्रतिशत भारतीयों के पास देश का 58 प्रतिशत धन था, जो अब दो दशक बाद 65 प्रतिशत हो गया है। औसत और माध्यमिक (मेडियन) धन के बीच का अंतर भी बढ़ता जा रहा है। इसका मुख्य कारण अर्थव्यवस्था का वित्तीयकरण है। आज देश में 2004 की तुलना में सकल वित्तीय संपत्तियां 13 गुना अधिक हैं।


स्पष्ट है कि आबादी का एक छोटा सा हिस्सा इस वित्तीय क्षेत्र से जुड़ा है, और उसकी स्थिति में सुधार हुआ है। लेकिन हालात इतने गंभीर हैं कि एलायंज ग्रुप ने बढ़ती असमानता के बारे में चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि इस शानदार वृद्धि को समानता और वितरण संबंधी न्याय के साथ संतुलित करना एक बड़ी चुनौती है। कंपनी के विशेषज्ञ शायद यह समझते हैं कि इस संतुलन के बिना समृद्धि खुशहाली में नहीं बदलती, बल्कि कई सामाजिक चुनौतियों को जन्म देती है, जैसा कि वर्तमान में हो रहा है।