भारत में विपक्ष की जिम्मेदारी: आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता की आवश्यकता

आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता की आवश्यकता
यह आवश्यक है कि भारत का विपक्ष समझे कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल सरकार की नहीं, बल्कि पूरे देश की जिम्मेदारी है। पाकिस्तान से उत्पन्न खतरा सिर्फ सरकार के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए चुनौती है। इस गंभीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भारत के साथ खड़ा करना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि विपक्ष की भी है।
भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, में विपक्ष का व्यवहार क्या इस प्रकार होना चाहिए जैसा कि वर्तमान में देखा जा रहा है? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, क्योंकि एक लोकतांत्रिक देश में विपक्ष से रचनात्मकता और जिम्मेदारी की अपेक्षा की जाती है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्ष ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह से भुला दिया है। उसने भारत की विदेश नीति और सुरक्षा नीति को भी घरेलू राजनीति का विषय बना दिया है। पहलगाम में निर्दोष भारतीय पर्यटकों के धर्म पूछकर हत्या किए जाने के बाद विपक्ष का प्रारंभिक रुख सकारात्मक था, लेकिन जल्दी ही उसने सहमति और जिम्मेदारी का भाव खो दिया और संवेदनशील मुद्दों पर विवाद की राजनीति शुरू कर दी। अब उसे एक बड़ा सबक मिला है, और उम्मीद है कि वह इसे याद रखेगा।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विपक्ष ने न तो अपनी सेना पर भरोसा किया, न ही विदेश सेवा के अधिकारियों पर। उसने पाकिस्तान की सेना, वहां की मीडिया और अमेरिका के राष्ट्रपति की बातों पर भरोसा किया। लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि ये सभी गलत थे। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी स्वीकार किया है कि भारत और पाकिस्तान ने आपसी बातचीत के जरिए सीजफायर का निर्णय लिया। इससे पहले, उन्होंने कहा था कि उन्होंने दोनों देशों के बीच सीजफायर कराया। भारत ने उनके इस दावे को बार-बार खारिज किया और कहा कि सीजफायर का निर्णय पाकिस्तान के अनुरोध पर लिया गया था। आमतौर पर विपक्ष से अपेक्षा की जाती है कि वह सामरिक और विदेश नीति के मामलों में सरकार का समर्थन करे, लेकिन भारत में विपक्ष ने इस मामले में जिम्मेदारी का प्रदर्शन नहीं किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से टेलीफोन पर बात की और ऑपरेशन सिंदूर के बारे में फैली भ्रांतियों को स्पष्ट किया। यह बातचीत लगभग 35 मिनट तक चली। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बताया कि प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित किसी भी विषय पर व्यापार की चर्चा नहीं हुई। उन्होंने दोहराया कि पाकिस्तान के अनुरोध पर ही भारत ने सीजफायर किया था। भारत कभी भी किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करेगा। इस बातचीत में प्रधानमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत अब आतंकवाद की घटनाओं को प्रॉक्सी वॉर नहीं, बल्कि सीधे युद्ध की कार्रवाई के रूप में देखेगा। राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत के रुख को समझा और आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई का समर्थन किया।
राष्ट्रपति ट्रंप को यह समझना चाहिए कि उनके द्वारा ऑपरेशन सिंदूर के बारे में की गई टिप्पणियों से भारत में नाराजगी हो सकती है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को कनाडा से लौटते समय अमेरिका में रुकने और साथ में भोजन करने का निमंत्रण दिया, जिसे प्रधानमंत्री ने विनम्रता से ठुकरा दिया। जी-7 की बैठक में प्रधानमंत्री ने अमेरिका और यूरोप के देशों को स्पष्ट संदेश दिया कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल चुनिंदा तरीकों से नहीं लड़ी जा सकती। उन्होंने कहा कि आतंकवाद को समर्थन देने वाले देशों का सम्मान किया जा रहा है, जो पाकिस्तान की ओर इशारा था।
भारत का विपक्ष को यह समझना चाहिए कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल सरकार की नहीं, बल्कि पूरे देश की जिम्मेदारी है। इसी भावना के तहत केंद्र सरकार ने पहलगाम कांड और ऑपरेशन सिंदूर के बारे में जानकारी देने के लिए सात प्रतिनिधिमंडल दुनिया के 33 देशों के दौरे पर भेजा। इन प्रतिनिधिमंडलों में विपक्ष के सदस्यों को भी शामिल किया गया। लेकिन विपक्ष ने इस पहल का भी अनादर किया। कांग्रेस पार्टी ने प्रतिनिधिमंडलों के दौरे से पहले ही आंतरिक राजनीति के आधार पर सदस्यों के चयन का विवाद खड़ा कर दिया।
विपक्ष इस मामले में पूरी तरह से एक्सपोज हो गया है। भारत की ओर से पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों पर की गई सैन्य कार्रवाई का पूरा विवरण विदेश सचिव और सेना के अधिकारियों ने प्रस्तुत किया। मीडिया के सामने पूरी टाइमलाइन रखी गई कि पाकिस्तान ने सीजफायर का प्रस्ताव दिया और भारत ने इसे स्वीकार किया। दुर्भाग्य से, विपक्ष ने विदेश सेवा के अधिकारियों और सेना के वरिष्ठ अधिकारियों की बात नहीं मानी और अमेरिका के राष्ट्रपति के बयानों के आधार पर सरकार पर सवाल उठाने लगे। विपक्ष का यह आचरण सरकार के लिए नहीं, बल्कि सेना और कूटनीतिक अधिकारियों के लिए शर्मिंदगी की बात थी।
अगर राष्ट्रपति ट्रंप से जी-7 की बैठक के दौरान प्रधानमंत्री की मुलाकात होती, तो आमने-सामने बात होती। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप बैठक छोड़कर अमेरिका लौट गए। इसके बाद टेलीफोन पर दोनों की बात हुई और ऑपरेशन सिंदूर के बारे में फैली भ्रांतियों को दूर किया गया। भारत में यह अघोषित सिद्धांत रहा है कि कूटनीति और सामरिक नीति पर विपक्ष हमेशा सरकार का साथ देता है। मौजूदा विपक्ष ने इस सिद्धांत को तोड़ा है। इससे कोई अच्छी मिसाल नहीं बनेगी। विपक्ष को अपने आचरण पर विचार करना चाहिए और अपनी गलती को समझना चाहिए।
राष्ट्रपति ट्रंप ने यह मान लिया है कि भारत और पाकिस्तान ने बातचीत करके सीजफायर किया और यह भी कि भारत और अमेरिका के बीच एक बड़ी व्यापार संधि होने जा रही है। यह व्यापार संधि भारत की बड़ी सफलता होगी। राष्ट्रपति ट्रंप ने बढ़ाए गए टैरिफ पर 90 दिन की रोक लगाई थी, जो नौ जुलाई को खत्म हो रही है। इससे पहले भारत के साथ व्यापार संधि हो जाने की संभावना है। (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)