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भारत-रूस संबंधों में नई दिशा: पुतिन की यात्रा से क्या बदलेगा डिफेंस पार्टनरशिप?

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का हालिया भारत दौरा कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा का केंद्र बना। इस यात्रा में व्यापार, रक्षा और तकनीकी सहयोग पर गहन विचार-विमर्श हुआ। दोनों देशों ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, S-500 और Su-57 जैसे महत्वपूर्ण रक्षा सौदों पर कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई, जिससे कई सवाल उठ रहे हैं। जानें, इस यात्रा के दौरान डिफेंस पार्टनरशिप में क्या बदलाव आए और भविष्य में क्या संभावनाएं हैं।
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भारत-रूस संबंधों में नई दिशा: पुतिन की यात्रा से क्या बदलेगा डिफेंस पार्टनरशिप?

पुतिन का भारत दौरा: महत्वपूर्ण चर्चा और लक्ष्य


नई दिल्ली : रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा हाल ही में समाप्त हुआ, जो वैश्विक स्तर पर चर्चा का विषय बना रहा। दिल्ली में आयोजित 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में व्यापार, रक्षा, ऊर्जा, तकनीकी सहयोग और वैश्विक मुद्दों पर गहन चर्चा हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर तक पहुँचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया।


इस यात्रा के दौरान दोनों नेताओं के बीच तीन महत्वपूर्ण मुलाकातें हुईं, जिसने द्विपक्षीय संबंधों को नई गति दी। हालांकि, बहुप्रतीक्षित S-500 मिसाइल डिफेंस सिस्टम और Su-57 फाइटर प्लेन पर कोई औपचारिक घोषणा न होने से कई सवाल उठे।


डिफेंस पार्टनरशिप में बदलाव के संकेत

डिफेंस पार्टनरशिप में बड़े बदलाव के संकेत
भारत और रूस ने इस यात्रा के दौरान अपनी पुरानी रक्षा साझेदारी को नए मॉडल की दिशा में ले जाने का संकेत दिया है। परंपरागत खरीदार-विक्रेता संबंध की जगह अब जॉइंट रिसर्च, डेवलपमेंट, को-प्रोडक्शन और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी शेयरिंग पर आधारित मॉडल अपनाने की सहमति बनी है। संयुक्त बयान में कहा गया कि यह पहल भारत की रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को मजबूती देगी। दोनों देश रूसी हथियार प्रणालियों के लिए आवश्यक स्पेयर पार्ट्स और कंपोनेंट्स का भारत में संयुक्त उत्पादन बढ़ाएंगे, जिसमें 'मेक इन इंडिया' प्रमुख भूमिका निभाएगा.


यह भी तय हुआ कि भारत की सेना के लिए संयुक्त उत्पादन के साथ-साथ भविष्य में मित्र देशों को निर्यात करने के लिए भी जॉइंट वेंचर्स पर विचार किया जाएगा। इससे यह संकेत मिलता है कि रूस आने वाले वर्षों में भी भारत का प्रमुख रक्षा सहयोगी बना रहेगा।


S-500 और Su-57 पर औपचारिक घोषणा का अभाव

S-500 और Su-57 पर घोषणा क्यों नहीं हुई?
विशेषज्ञों का मानना है कि इन दोनों हाई-एंड प्रणालियों पर औपचारिक घोषणा न होना एक रणनीतिक कदम है। दुनियाभर की निगाहें इस यात्रा पर थीं और अमेरिका सहित कई पश्चिमी देश रूस से बड़े हथियार सौदों पर आपत्ति जताते रहे हैं। ऐसे में भारत और रूस ने इन सौदों पर पर्दे के पीछे बातचीत जारी रखते हुए सार्वजनिक स्तर पर किसी भी विवाद से बचने की रणनीति अपनाई।


Su-57 की तकनीक ट्रांसफर की मांग कर रहा भारत
यह भी ध्यान देने योग्य है कि S-400 डील के दौरान भी शुरुआत में कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई थी। रक्षा समझौते अक्सर लंबे और गोपनीय चरणों से गुजरते हैं। Su-57 के मामले में भारत पूरी तकनीक ट्रांसफर की मांग कर रहा है, जबकि रूस अभी इस फाइटर को अपनी वायुसेना में सीमित संख्या में ही उपयोग कर रहा है। इसलिए उसकी प्राथमिकता घरेलू जरूरतों को पूरा करने पर है.


डिफेंस सेक्रेटरी राजेश कुमार सिंह ने पहले ही संकेत दिया था कि बातचीत का फोकस "व्यापक रक्षा सहयोग" पर होगा, न कि तात्कालिक "बड़ी घोषणाओं" पर। यही वजह है कि इस महत्वपूर्ण यात्रा में कई अहम फैसलों के बावजूद दोनों पक्षों ने हाई-प्रोफाइल डिफेंस डील्स पर चुप्पी बरती।