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भारतीय इतिहास में सिख शहादतों का महत्व और नई पहल

दिल्ली विश्वविद्यालय ने सिख शहादतों पर एक अंडरग्रैजुएट कोर्स शुरू करने का निर्णय लिया है, जो सिख समुदाय के अद्वितीय योगदान को मान्यता देगा। यह पहल गुरु तेग बहादुर साहिब की 350वीं शहीदी वर्षगांठ के अवसर पर आई है। मनजिंदर सिंह सिरसा ने इस निर्णय का स्वागत किया है और अन्य विश्वविद्यालयों से भी ऐसे पाठ्यक्रम शुरू करने की अपील की है। यह कोर्स सिख पहचान, इतिहास और शहादतों के महत्व को समझने में मदद करेगा।
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सिख शहादतों का ऐतिहासिक संदर्भ

भारतीय इतिहास, विशेषकर पंजाब का इतिहास, सिख शहादतों से भरा हुआ है। गुरु नानक देव जी से शुरू होकर यह यात्रा गुरु गोबिंद सिंह जी तक पहुंचती है, जहां सिख धर्म ने खेतों से लेकर युद्ध के मैदानों तक अपनी पहचान बनाई। गुरुओं की शहादतों से प्रेरित होकर, सिखों ने मुगलों और अंग्रेजों के खिलाफ अपने बलिदानों से उन्हें चुनौती दी। सिखों ने अपने देश और धर्म के लिए अद्वितीय बलिदान दिए हैं, जो इतिहास में दुर्लभ हैं। मुगलों के अत्याचारों के खिलाफ गुरुओं द्वारा शुरू किया गया संघर्ष समय के साथ विकसित हुआ। बंदा बहादुर ने जिस सिख राज्य की नींव रखी, वह बाद में महाराजा रणजीत सिंह के शासन में एक विशाल वृक्ष के रूप में उभरा।


महाराजा रणजीत सिंह का योगदान

महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में अंग्रेजी हकूमत उनके राज्य पर कब्जा करने की कोशिश तो करती थी, लेकिन सफल नहीं हो पाई। उन्होंने सतलुज से लेकर काबुल तक अपनी शक्ति का लोहा मनवाया। लेकिन महाराजा की मृत्यु के बाद, सिख फौज दो धड़ों में बंट गई। एक धड़ा अंग्रेजों के साथ मिल गया, जबकि दूसरा महाराजा की विरासत की रक्षा के लिए संघर्ष करता रहा। गुरुओं से मिली प्रेरणा के साथ, सिख समाज ने अपने खून से कुर्बानियों की परंपरा को आगे बढ़ाया।


स्वतंत्रता के बाद सिखों की कुर्बानियों का महत्व

स्वतंत्रता के बाद, सिखों की शहादतों को पंजाब के इतिहास में सीमित कर दिया गया। यह आवश्यक था कि मुगलों और अंग्रेजों के खिलाफ लड़े गए युद्धों और बलिदानों को राष्ट्रीय इतिहास के रूप में पढ़ाया जाए। लेकिन दुर्भाग्य से, स्कूलों और कॉलेजों में इन हकूमतों को अधिक प्राथमिकता दी गई। सिखों, मराठों, राजपूतों और अन्य देशभक्तों ने विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ अपने खून की नदियां बहाई।


दिल्ली विश्वविद्यालय की नई पहल

दिल्ली सरकार ने मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा की मांग पर, दिल्ली विश्वविद्यालय में सिख शहादतों पर एक अंडरग्रैजुएट कोर्स शुरू करने का निर्णय लिया है। सिरसा ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए अन्य विश्वविद्यालयों से भी ऐसे पाठ्यक्रम शुरू करने की अपील की है। उनका कहना है कि यह कोर्स सिख समुदाय के अद्वितीय योगदान को सम्मानित करने का एक ऐतिहासिक कदम है। यह निर्णय गुरु तेग बहादुर साहिब की 350वीं शहीदी वर्षगांठ के अवसर पर आया है।


भविष्य की दिशा

सिरसा ने कहा कि यह कोर्स केवल एक शैक्षणिक पाठ्यक्रम नहीं है, बल्कि यह हमारे गुरुओं द्वारा दी गई शहादतों और ऐतिहासिक लड़ाइयों की अहमियत को समझने का एक बड़ा कदम है। इस कोर्स में सिख पहचान, इतिहास, शहादतें, और संघर्षों के विभिन्न पहलुओं को शामिल किया जाएगा। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी का धन्यवाद करते हुए कहा कि उनके मार्गदर्शन में सिख विरासत को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है।


सिख शहादतों का राष्ट्रीय महत्व

हम मनजिंदर सिंह सिरसा की इस मांग का समर्थन करते हैं कि दिल्ली सरकार के निर्णय से प्रेरणा लेकर सिख शहादतों को राष्ट्रीय स्तर पर स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया जाए। इसके साथ ही, हमारे पूर्वजों की कुर्बानियों को भी इतिहास के सुनहरे पन्नों में स्थान मिलना चाहिए। मुगलों और अंग्रेजों द्वारा की गई क्रूरता को भी उजागर किया जाना चाहिए, ताकि भविष्य की पीढ़ी सिखों और अन्य देशभक्तों के बलिदानों के महत्व को समझ सके।


सिखों के योगदान की पहचान

भारतीय इतिहास में सिख शहादतों का महत्व और नई पहल


लेखक का संदेश

-इरविन खन्ना, मुख्य संपादक