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भारतीय नेताओं की विफलता: अतीत की छाया में भविष्य की अनदेखी

पिछले पचास वर्षों में भारतीय नेताओं ने केवल राजनीतिक संघर्ष और सत्ता की खींचतान में समय बिताया है। इस लेख में, हम देखते हैं कि कैसे अतीत की बातें और झूठे आरोपों का खेल वर्तमान चुनौतियों का सामना करने में बाधा बन गया है। क्या भारतीय राजनीति में कोई सकारात्मक बदलाव संभव है? जानें इस गहन विश्लेषण में।
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भारतीय नेताओं की विफलता: अतीत की छाया में भविष्य की अनदेखी

भारतीय राजनीति का वर्तमान परिदृश्य

पिछले पचास वर्षों में, भारतीय नेताओं के पास केवल राजनीतिक संघर्ष और सत्ता की खींचतान का खेल रह गया है। एक-दूसरे के प्रति द्वेष और झूठे आरोपों का यह खेल उनकी प्राथमिक चिंता बन गया है। यह स्थिति दर्शाती है कि नेताओं का परनिंदक और अतीतजीवी होना हिंदू समाज की असमर्थता का संकेत है।


एक ओर, मैकॉले और उपनिवेशवाद की आलोचना होती है, जबकि दूसरी ओर, भारत को विश्वगुरु मानने का दावा किया जाता है। इस प्रकार की बातें केवल अतीत की ओर देखने का संकेत देती हैं, जिससे वर्तमान चुनौतियों का सामना करने में असमर्थता झलकती है।


यह आधुनिक भारत का एक सामान्य दृश्य है, जहां देसी नेता अतीत की बातें करते हैं और वर्तमान की समस्याओं पर चर्चा करने से कतराते हैं। वे अक्सर किसी सुरक्षित लक्ष्य को निशाना बनाते हैं, जैसे मैकॉले या नेहरू, बजाय कि वर्तमान समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने के।


इसलिए, संसद में किसी भी वर्तमान समस्या पर चर्चा नहीं होती। नेता अक्सर किसी प्रतिद्वंद्वी या दिवंगत विदेशी पर आरोप लगाते हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि वे अपने देश की समस्याओं से ध्यान हटाने में लगे हैं।


उपनिवेशवाद की आलोचना करना भी अजीब है, जब हजारों युवा प्रतिभाएं विदेशों में बसने के लिए मजबूर हो रही हैं। नेताओं को इस पर ध्यान नहीं है कि वे प्रतिभाशाली व्यक्तियों को देश में रखने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं।


इस प्रकार, पिछले पचास वर्षों में, भारतीय नेताओं के पास केवल दलीय लड़ाई और गद्दी छीनने की तिकड़में रह गई हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि वे केवल वोट बटोरने के लिए लोगों को उकसाने में लगे हैं।