भाषा और राजनीति: सत्ता के नेताओं के बयानों में विरोधाभास

भाषाई मुद्दों पर सत्ता का रवैया
हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने अंग्रेजी बोलने वालों के लिए एक विवादास्पद बयान दिया था। इसके बाद से विभिन्न भाषाओं के प्रति सम्मान की बातें लगातार उठाई जा रही हैं, जो कि मौलिक बयानों के विपरीत हैं। कुछ महीने पहले, सरकार ने सभी राज्यों पर हिंदी को थोपने का प्रयास किया था, लेकिन विरोध के बाद अब सभी भाषाएं देश और समाज की आत्मा बन गई हैं, और हिंदी अन्य भाषाओं की सहेली बन गई है।
सत्ता के मुद्दे और उनकी असंगति
जब सत्ता के पास जनता को बताने के लिए कोई ठोस मुद्दा नहीं होता, तब कभी भाषा, कभी पहनावे, कभी रंगों और कभी धर्म का मुद्दा उठाया जाता है। यह स्थिति हमारे देश में लगातार बनी हुई है। लेकिन समस्या यह है कि मुद्दे उठाने के बाद भी सत्ता में बैठे नेता अपने एजेंडे को लागू नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे नेता अपने एजेंडे को सार्वजनिक रूप से उजागर करते हैं और फिर विरोध के बाद अपने बयानों को बदलने में जुट जाते हैं।
भाषा के प्रति सरकार का दोहरा रवैया
गृह मंत्री के अंग्रेजी बोलने वालों के लिए शर्म के बयान के कुछ दिन बाद, वे मुस्कराते हुए अंग्रेजी में प्रकाशित पुस्तक 'इमरजेंसी फाइल्स' का विमोचन करते नजर आए। हिंदी को बढ़ावा देने और इसे पूरे देश में लागू करने की बात करने से पहले, केंद्र सरकार को अपने कार्यों में भाषा के उपयोग की समीक्षा करनी चाहिए।
सरकारी रिपोर्टों में भाषा का अंतर
संसद में दिए गए अधिकांश लिखित उत्तरों और मंत्रालयों की वेबसाइटों पर गतिविधियों की जानकारी हिंदी में उपलब्ध नहीं है। प्रेस सूचना ब्यूरो के बुलेटिन मुख्यतः अंग्रेजी में प्रकाशित होते हैं, जिनका हिंदी में अनुवाद नहीं होता। नीति आयोग और सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्टें भी केवल अंग्रेजी में होती हैं।
भाषाई असमानता के उदाहरण
जहां हिंदी में जानकारी उपलब्ध है, वहां भी उसकी गुणवत्ता संदिग्ध होती है। जी20 शिखर सम्मेलन के बाद के घोषणापत्र का हिंदी अनुवाद पढ़कर देखिए, आपको कुछ भी समझ में नहीं आएगा। भारत मौसम विज्ञान विभाग की रिपोर्ट में भी हिंदी और अंग्रेजी के आंकड़ों में भारी अंतर है।
सरकार की भाषाई नीतियों की आलोचना
केंद्र सरकार का भाषा के प्रति रवैया हमेशा से अस्पष्ट रहा है। 2004-2005 से पारंपरिक भाषाओं की चर्चा हो रही है, लेकिन अब तक केवल 11 भाषाएं इस सूची में शामिल की गई हैं। सरकार संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए भारी अनुदान देती है, जबकि अन्य भाषाओं को कम सहायता मिलती है।
राजनीतिक अस्थिरता और भाषा का उपयोग
एक अध्ययन के अनुसार, अहंकारी नेता सत्ता में पहुंचने के लिए विभिन्न रणनीतियों का उपयोग करते हैं, जिसमें विपक्ष का चरित्र हनन और सामाजिक ताना-बाना को तोड़ना शामिल है। ऐसे नेता सत्ता में आने के बाद अपनी हिंसक भाषा और व्यवहार से समाज में और अधिक विभाजन पैदा करते हैं।
समर्थकों का तुष्टीकरण
समर्थक अपने नेताओं को सही मानते हैं और उनके अनर्गल प्रलाप पर भरोसा करते हैं। हमारे राजनेता हमें अधिक उग्र और असहिष्णु बना रहे हैं, और हम उनकी आंखें बंद कर समर्थन कर रहे हैं। राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता के समय में समाज कट्टरपंथी नेताओं पर अधिक भरोसा करने लगता है।