Newzfatafatlogo

मनरेगा में गड़बड़ी का मुद्दा: सरकार की नई योजना पर सवाल

केंद्र सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) में गड़बड़ी के मुद्दे को लेकर नई रणनीति पर विचार कर रही है। पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में गड़बड़ियों के आंकड़ों के आधार पर सरकार तकनीकी बदलाव की योजना बना रही है। हालांकि, इस योजना में गड़बड़ी का अनुमान मात्र दो हजार करोड़ रुपए है। इसके विपरीत, पिछले 10 वर्षों में सरकार ने 16.35 लाख करोड़ रुपए का कर्ज राइट ऑफ किया है। जानें इस मुद्दे की गहराई और इसके पीछे की राजनीति के बारे में।
 | 
मनरेगा में गड़बड़ी का मुद्दा: सरकार की नई योजना पर सवाल

मनरेगा में बदलाव की आवश्यकता

केंद्र सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना, जिसे मनरेगा के नाम से जाना जाता है, में बदलाव करने की योजना बना रही है। सरकार का तर्क है कि इस योजना में व्यापक गड़बड़ी हो रही है। पश्चिम बंगाल के 19 जिलों में हुई गड़बड़ियों का उल्लेख किया गया है, इसके अलावा 23 राज्यों में किए गए सर्वेक्षण के परिणामों का भी हवाला दिया गया। हालांकि, इस योजना में सालाना लगभग एक लाख करोड़ रुपए का बजट है, जिसमें गड़बड़ी का अनुमान मात्र दो हजार करोड़ रुपए से भी कम है। इसके बावजूद, सरकार इसे तकनीकी रूप से बदलने की कोशिश कर रही है, जिससे यह योजना समाप्त हो जाए।


राइट ऑफ का बड़ा आंकड़ा

दिलचस्प बात यह है कि पिछले 10 वर्षों में सरकार ने 16.35 लाख करोड़ रुपए का कर्ज राइट ऑफ किया है, जो कि हर साल डेढ़ लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि है। सरकार के समर्थक यह तर्क देते हैं कि राइट ऑफ का अर्थ माफी नहीं होता। यह सच है, लेकिन राइट ऑफ किए गए कर्ज की वसूली 25 प्रतिशत से अधिक नहीं हो पाती। इसका मतलब है कि यदि 25 प्रतिशत भी वसूल किया गया, तो 12 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होगा। इस राइट ऑफ के लिए इन्साल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड का उपयोग कर लाखों करोड़ के लोन को 11 हजार करोड़ रुपए में सेटल किया जा रहा है। यह एक अलग मुद्दा है। लेकिन इस सरकार को यह चिंता है कि मनरेगा में हर साल दो हजार करोड़ रुपए की गड़बड़ी हो रही है, जो कि असल में राजनीति से अधिक जुड़ा हुआ निर्णय प्रतीत होता है।