ममता बनर्जी का नया भाषा आंदोलन: बांग्लाभाषियों के अधिकारों की रक्षा

भाषा आंदोलन की शुरुआत
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने बहुचर्चित 'भाषा आंदोलन' की शुरुआत बोलपुर से की है, जो कि रवींद्रनाथ टैगोर की कर्मभूमि मानी जाती है। उन्होंने इस आंदोलन की शुरुआत 28 जुलाई को की, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने मातृभाषा दिवस के रूप में मान्यता दी है। इस पहल का उद्देश्य विभिन्न राज्यों में बांग्लाभाषी लोगों पर हो रहे कथित हमलों के खिलाफ आवाज उठाना है। तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि बांग्लाभाषी लोगों को उनके भाषाई पहचान के कारण प्रताड़ित किया जा रहा है।
राजनीतिक रणनीति और जागरूकता
ममता बनर्जी ने इस घटनाक्रम को अपने राज्य के निवासियों में बांग्ला पहचान के प्रति जागरूकता फैलाने और उन्हें संगठित करने का एक अवसर माना है। विधानसभा चुनावों के नजदीक आने के कारण उन्होंने इस मुद्दे का पूरा लाभ उठाने की योजना बनाई है। पिछले हफ्ते, वे कोलकाता की सड़कों पर उतरीं और बांग्लाभाषियों से 'दूसरा भाषा आंदोलन' शुरू करने का आह्वान किया। उनका इशारा 1952 में ढाका में हुए प्रसिद्ध भाषा आंदोलन की ओर था, जो उर्दू को थोपने के खिलाफ बांग्लाभाषियों द्वारा शुरू किया गया था।
चिंताजनक हालात
इस आंदोलन का परिणाम 1971 में पाकिस्तान के विभाजन और बांग्लादेश के निर्माण के रूप में सामने आया। वर्तमान में भारत में बन रहे हालात भी चिंताजनक हैं। तृणमूल कांग्रेस के आरोपों को निराधार नहीं कहा जा सकता, क्योंकि देश के विभिन्न हिस्सों में 'बांग्लादेशियों' को निकालने का अभियान चल रहा है, जिसमें कई भारतीय बांग्लाभाषी भी शामिल हो सकते हैं। इस मुद्दे को ममता बनर्जी ने बांग्ला अस्मिता का प्रश्न बना दिया है, जो कि भारत जैसे विविधता वाले देश में पहचान की राजनीति को खतरनाक बनाता है।