महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे भाइयों का महत्वपूर्ण मिलन

महाराष्ट्र की राजनीति में आज का दिन
Maharashtra Politics 2025: आज महाराष्ट्र की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। शिवसेना यूबीटी के नेता उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे, जो महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख हैं, आज एक मंच पर नजर आएंगे। यह अवसर मराठी विजय दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। यह आयोजन इसलिए किया जा रहा है क्योंकि महाराष्ट्र सरकार को हिंदी अनिवार्यता के मुद्दे पर पीछे हटना पड़ा है। लोगों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न स्थानों पर आमंत्रण पत्रों के रूप में पोस्टर लगाए गए हैं, जिन पर लिखा है कि हम आपके लिए संघर्ष कर रहे हैं। आइए, नाचते-गाते हुए हमारे साथ जुड़ें। इस रैली के राजनीतिक महत्व को समझना आवश्यक है।
भाइयों के सामने अस्तित्व का संकट
दोनों भाइयों के लिए अस्तित्व का संकट सबसे बड़ी चुनौती है। राज ठाकरे ने 2005 में पार्टी में नेतृत्व विवाद के कारण अलग होकर 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की स्थापना की। वहीं, उद्धव ठाकरे ने शिवसेना की कमान संभाली। राज ठाकरे की पार्टी ने 2009 के विधानसभा चुनाव में 13 सीटें जीतीं, लेकिन उसके बाद से पार्टी का प्रदर्शन लगातार गिरता गया। 2014 में 1 सीट, 2019 में 1 सीट और 2024 में कोई सीट नहीं मिली। वर्तमान में मनसे के पास कोई पार्षद, विधायक या सांसद नहीं है।
शिवसेना का भी संकट
शिवसेना का हाल भी अब कुछ ऐसा ही होता जा रहा है। 2019 में बीजेपी से अलग होने के बाद पार्टी में विरोध के स्वर उठने लगे। उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन किया। हालांकि, एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद पार्टी के पास न तो नाम बचा, न ही सिंबल और न ही मालिकाना हक। 2019 में शिवसेना के पास 57 विधायक थे, लेकिन अब उनके पास केवल 20 विधायक रह गए हैं। वहीं, शिंदे गुट के पास अभी भी 57 विधायक हैं।
बीएमसी चुनाव की चुनौती
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुंबई नगरपालिका के चुनाव जल्द ही होने वाले हैं। मुंबई महानगरपालिका का बजट कई राज्यों की अर्थव्यवस्था के बराबर है, जिससे सभी पार्टियां इस पर काबिज होना चाहती हैं। दोनों भाइयों के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर है। वे अपने अस्तित्व और विरासत को बचाने के लिए एक साथ आ सकते हैं।
बीजेपी का लाभ?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस स्थिति में बीजेपी को क्या लाभ होगा? बीजेपी ने महाराष्ट्र में हिंदुत्व की राजनीति की है और 1990 के बाद से पार्टी का उभार हुआ। 2019 में गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी और मजबूत हुई है। अब, यदि दोनों भाई राजनीतिक ताकत बनते हैं, तो यह बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। हालांकि, हिंदुत्व और मराठी मुद्दों पर दोनों पार्टियां हमेशा एक साथ रही हैं।
भाइयों का प्रभाव
यह भी ध्यान देने योग्य है कि दोनों भाइयों का प्रभाव केवल मुंबई और उसके आसपास के क्षेत्रों तक सीमित है। पूरे राज्य में उनकी सफलता सुनिश्चित नहीं है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। इस समय कयासबाजियों का दौर चल रहा है, लेकिन दोनों के मंच साझा करने से कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल है।