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मालेगांव बम धमाका मामले में सभी आरोपियों को बरी किया गया, UAPA की वैधानिक मंजूरी पर सवाल

विशेष NIA कोर्ट ने 2008 के मालेगांव बम धमाके मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत ने UAPA की वैधानिक मंजूरी की कमी को प्रमुख कारण बताया। UAPA, जो आतंकवादी गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए बनाया गया है, के तहत कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की गई है। इस कानून की प्रक्रिया और लागू करने की प्रणाली पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जिससे कई मामलों की वैधता पर असर पड़ रहा है। जानिए UAPA के बारे में और इसके अंतर्गत सजा के प्रावधानों के बारे में।
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मालेगांव बम धमाका मामले में सभी आरोपियों को बरी किया गया, UAPA की वैधानिक मंजूरी पर सवाल

विशेष NIA कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

2008 के मालेगांव बम धमाके से जुड़े मामले में विशेष NIA कोर्ट ने सोमवार को सभी आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया कि इस मामले में यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) को लागू करने के लिए आवश्यक वैधानिक मंजूरी नहीं ली गई थी। कोर्ट ने UAPA के तहत दर्ज मामले को तकनीकी आधार पर खारिज करते हुए अभियोजन पक्ष की जांच में कई खामियों की ओर इशारा किया।


UAPA के तहत कानूनी प्रक्रिया

विशेष NIA कोर्ट के न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने कहा कि UAPA लागू करने के लिए सरकार की मंजूरी अनिवार्य होती है, लेकिन इस मामले में मंजूरी के आदेश दोषपूर्ण पाए गए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जब कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं हुई, तो UAPA के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।


UAPA क्या है?

UAPA, यानी गैरकानूनी गतिविधियां अधिनियम, भारत का एक कठोर कानून है, जिसे आतंकवादी गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए बनाया गया था। इसकी धारा-15 आतंकवादी गतिविधियों को परिभाषित करती है। यदि कोई व्यक्ति भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा या आर्थिक ढांचे को नुकसान पहुंचाने की नीयत से कोई कार्य करता है, तो वह इस कानून के दायरे में आता है।


UAPA के तहत सजा का प्रावधान

UAPA के अंतर्गत न्यूनतम 5 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। यदि किसी आतंकी गतिविधि में किसी की जान जाती है, तो आरोपी को मृत्युदंड भी दिया जा सकता है। इस कानून की एक विशेषता यह है कि केवल संदेह के आधार पर भी किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित किया जा सकता है।


UAPA का इतिहास और संशोधन

1967 में लागू किए गए इस कानून को समय-समय पर सख्त किया गया है। अब तक इसमें छह बार संशोधन हो चुके हैं। 2019 के संशोधन में सरकार को यह अधिकार मिला कि वह किसी भी संगठन या व्यक्ति को आतंकी घोषित कर सकती है।


NIA को UAPA के तहत शक्तियाँ

UAPA के तहत राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को यह अधिकार है कि वह किसी भी संदिग्ध की संपत्ति को जब्त कर सकती है। यह कानून संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीमित प्रतिबंध लगाने के उद्देश्य से बनाया गया था, ताकि भारत की अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालने वाली गतिविधियों को समय पर रोका जा सके।


UAPA कब लागू होता है?

UAPA को विशेष परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है। हालांकि, इसकी प्रक्रिया और मंजूरी को लेकर कई बार सवाल उठते रहे हैं। कई मामलों में अभियोजन पक्ष केवल UAPA लगाने के बाद भी आरोपी के खिलाफ मजबूत सबूत पेश नहीं कर पाया। अब जब अदालतों में UAPA की वैधानिक मंजूरी की प्रक्रियात्मक चूक के चलते कई मामले कमजोर पड़ रहे हैं, तो इस सख्त कानून की व्याख्या और लागू करने की प्रणाली को लेकर चर्चा फिर से तेज हो गई है।