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मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण प्रगति

बेल्जियम की कोर्ट ऑफ कैसेशन ने मेहुल चोकसी की प्रत्यर्पण अपील को खारिज कर दिया है, जिससे उनकी भारत वापसी की प्रक्रिया में तेजी आई है। अदालत ने चोकसी के द्वारा उठाए गए सभी तर्कों को निराधार मानते हुए यह निर्णय लिया। इसके साथ ही, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत में चोकसी को न्याय से वंचित होने का कोई खतरा नहीं है। इस फैसले के बाद, चोकसी पर जुर्माना भी लगाया गया है। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और इसके कानूनी पहलुओं के बारे में।
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मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण प्रगति

बेल्जियम की अदालत का फैसला

पीएनबी घोटाले में वांछित मेहुल चोकसी को भारत लाने की प्रक्रिया अब स्पष्ट हो गई है। बेल्जियम की सर्वोच्च अदालत, कोर्ट ऑफ कैसेशन, ने चोकसी द्वारा उठाई गई आपत्तियों को निराधार मानते हुए भारत को उनके प्रत्यर्पण के खिलाफ की गई अपील को खारिज कर दिया है। अदालत ने यह पुष्टि की है कि चोकसी अपने आत्मसमर्पण की अनुमति देने वाले पूर्व आदेशों में हस्तक्षेप करने के लिए कोई ठोस कानूनी या तथ्यात्मक आधार प्रस्तुत नहीं कर सके।


बेल्जियम के सर्वोच्च न्यायालय ने एंटवर्प कोर्ट ऑफ अपील के 17 अक्टूबर, 2025 के निर्णय को बरकरार रखते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि प्रत्यर्पण की प्रक्रिया घरेलू कानून और यूरोपीय मानवाधिकार मानकों का पूरी तरह से पालन करती है।


भारत में न्याय की स्थिति

अदालत ने यह भी कहा कि चोकसी को भारत में न्याय से वंचित होने, यातना या अमानवीय व्यवहार का कोई वास्तविक खतरा नहीं है। इसके अलावा, चोकसी पर 11,000 रुपए (104 यूरो) का जुर्माना भी लगाया गया है। यह निर्णय एंटवर्प कोर्ट ऑफ अपील के आदेश को मान्यता देता है, जिसमें कहा गया था कि चोकसी के दावे भारत में न्याय न मिलने के संबंध में पर्याप्त नहीं हैं।


चोकसी ने अपनी अपील में एंटिगुआ से कथित अपहरण, इंटरपोल की फाइलों की निगरानी करने वाले आयोग की राय, मीडिया कवरेज और भारत में निष्पक्ष सुनवाई न मिलने की आशंका जैसे तर्क प्रस्तुत किए थे, लेकिन अदालत ने इन सभी को खारिज कर दिया।


कानूनी औपचारिकताओं का पालन

सभी कानूनी औपचारिकताओं का पालन करते हुए, कोर्ट ऑफ कैसेशन ने चोकसी की अपील को खारिज कर दिया और उन्हें 104.01 यूरो का खर्च वहन करने का निर्देश दिया। चोकसी और उनके भतीजे नीरव मोदी पर पंजाब नेशनल बैंक के खिलाफ लगभग 2 अरब डॉलर की धोखाधड़ी का आरोप है। केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय ने भारत में उनके खिलाफ कई आरोपपत्र दायर किए हैं, और इस मामले से संबंधित कई गैर-जमानती वारंट भी लंबित हैं।