मोदी और इंदिरा गांधी: सत्ता की चिंता और भय का समानांतर

सत्ता की चिंता और भय का समानांतर
इंदिरा गांधी ने लगभग 17 वर्षों तक शासन किया, जिसमें असुरक्षा और भय का माहौल छाया रहा। इसी तरह, नरेंद्र मोदी भी पिछले 11 वर्षों से इसी मनोदशा में शासन कर रहे हैं। इंदिरा गांधी की राजनीतिक शैली उनके अकेलेपन और नेहरू की छाया से उपजी हीनता से प्रभावित थी। उन्होंने हमेशा अपने को दुश्मनों से घिरा हुआ महसूस किया और हर चुनाव में पूरी ताकत से मुकाबला किया। उन्होंने अपने प्रति भक्ति उत्पन्न करने के लिए भय का सहारा लिया, लेकिन एक महत्वपूर्ण अंतर था कि उन्होंने अपने को अवतार नहीं बताया।
आपातकाल ने हिंदुओं को और अधिक भयभीत किया, लेकिन उस समय सिस्टम में कुछ जान थी। मानेकशॉ और रामनाथ काव जैसे सक्षम लोगों के नेतृत्व में बांग्लादेश का निर्माण संभव हुआ।
अब नरेंद्र मोदी के 11 वर्षों के शासन पर विचार करें। वे भी इंदिरा गांधी की तरह अपनी कुर्सी की चिंता में लगे रहते हैं। उन्होंने विपक्ष को भयभीत करने के लिए ईडी और सीबीआई का सहारा लिया है। मोदी का प्रयास है कि वे खुद को वाजपेयी, नेहरू और इंदिरा से महान साबित करें। उन्होंने बड़े-बड़े जुमलों के माध्यम से भारत को भक्तिमय और बुद्धिहीन बना दिया है।
हालांकि, समय की लीला यह दर्शाती है कि भारत अब दुनिया के सामने भय का प्रतीक बन गया है। मोदी के साथ हम हिंदू, अपने देश में कितने ही बहादुर क्यों न हों, लेकिन दक्षिण एशिया में कोई भी हमसे डरता नहीं है।
यह ट्रंप द्वारा भारत को बार-बार अपमानित करने से स्पष्ट है। भारत ने 22 मिनट के ऑपरेशन में अपने लड़ाकू विमानों को खोया और फिर भी सन्न रह गया। हमें पाकिस्तान से ड्रोन-मिसाइलों की बारिश का सामना करना पड़ा, लेकिन हम ट्रंप से मदद मांगने लगे।
क्या इस भयभीत कौम में कोई शर्म या विवेक है? पिछले 11 वर्षों में कितनी घटनाएं हुई हैं? मोदी को आतंकवाद के खिलाफ इजराइल की तरह ट्रंप को साझेदार बनाना चाहिए था।
भारत का हिंदू केवल सत्ता का भूखा है, और इस भय-भक्ति के वायरस का शिकार हो गया है। राष्ट्र का प्रलाप झूठ में बदल गया है। हाल ही में चीन में एससीओ की बैठक में भारत ने आतंकवाद का जिक्र किया, लेकिन किसी ने उसे गंभीरता से नहीं लिया।