योगी सरकार की तबादला नीति: भ्रष्टाचार का नया चेहरा?
तबादला नीति की वास्तविकता
15 मई से 15 जून के बीच योगी बाबा की तबादला नीति लागू की गई थी। इस नीति को पारदर्शी और नियमबद्ध बताया गया था, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। जैसे-जैसे मामले की परतें खुल रही हैं, यह स्पष्ट हो रहा है कि इस नीति के तहत भ्रष्टाचार का नया बाजार सज गया है।बेसिक शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, मनचाही पोस्टिंग के लिए तीन लाख रुपए की मांग की जा रही है। यह आरोप केवल सोशल मीडिया तक सीमित नहीं है, बल्कि कई पीड़ित कर्मचारियों ने इसे लिखित रूप में भी प्रस्तुत किया है।
सरकार इसे अफवाह बताने की कोशिश कर रही है, लेकिन विपक्ष ने इसे एक बड़ा मुद्दा बना लिया है। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि "तबादला नीति भ्रष्टाचार का नया हथियार बन गई है।"
मंत्रियों और अधिकारियों के बीच टकराव
हालिया घटनाओं से यह स्पष्ट हो गया है कि अधिकारियों और मंत्रियों के बीच टकराव बढ़ रहा है। स्वास्थ्य विभाग के तहत भवानी सिंह खनगरौत को सेशन जीरो के बावजूद हटा दिया गया और उन्हें वेटिंग में डाल दिया गया। स्टाम्प पंजीयन मंत्री रविंद्र जायसवाल की शिकायत के बाद उनके विभाग में तबादला नीति को स्थगित कर दिया गया और अब SIT जांच के आदेश दिए गए हैं।
उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भी स्वास्थ्य विभाग में तबादलों को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सीधे शिकायत की है।
नियमों की वास्तविकता
पूर्व मुख्य सचिव स्तर के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि नियम तो सही हैं, लेकिन खेल 'कार्य दक्षता और समीक्षा' के नाम पर होता है। इसी आधार पर डेटा तैयार किया जाता है, और यहीं से असली घालमेल शुरू होता है।
उन्होंने यह भी बताया कि दंपत्य नीति, चिकित्सा कारण, विकलांगता, और स्थानिक कार्यदक्षता जैसे प्रावधानों को भी मनचाहे तरीके से तोड़ा-मरोड़ा जाता है।
योगी की जीरो टॉलरेंस नीति पर विपक्ष का संदेह
योगी सरकार खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस वाली सरकार बताती रही है, लेकिन विपक्ष इसे केवल ‘नारेबाज़ी’ करार दे रहा है।