राज ठाकरे का हिंदी भाषा को अनिवार्य करने के खिलाफ विरोध

राज ठाकरे का तीखा विरोध
महाराष्ट्र की नई शिक्षा नीति के तहत पहली कक्षा से हिंदी को अनिवार्य करने के निर्णय पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे ने कड़ा विरोध व्यक्त किया है। राज्य सरकार की नीति के अनुसार, हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू किया गया है, जबकि अन्य भाषाओं को पढ़ाने के लिए कम से कम 20 छात्रों की आवश्यकता होगी।
सांस्कृतिक अस्मिता पर हमला
ठाकरे ने इस निर्णय को महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान और मातृभाषा मराठी के खिलाफ बताया है, इसे थोपने की मानसिकता करार दिया है। उन्होंने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर राज्य सरकार को दो बार पत्र भेजे हैं और अब तीसरा पत्र सभी स्कूलों के प्राचार्यों को भेजा जाएगा, ताकि इस निर्णय का संगठित विरोध किया जा सके। ठाकरे का आरोप है कि इस नीति के पीछे कुछ आईएएस अधिकारियों की लॉबी सक्रिय है, जो मराठी बोलने से कतराते हैं और हिंदी को थोपने का प्रयास कर रहे हैं।
प्राचार्यों को पत्र भेजा
राज ठाकरे ने सभी स्कूलों के प्राचार्यों को पत्र भेजकर कहा है कि वे सरकार के इस निर्णय का विरोध करें। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि ऐसा नहीं किया गया, तो MNS के कार्यकर्ता उनसे मिलने आएंगे। ठाकरे ने सवाल उठाया कि यदि महाराष्ट्र में हिंदी अनिवार्य हो सकती है, तो क्या मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश में मराठी को तीसरी भाषा के रूप में सिखाया जाएगा?
केंद्र सरकार की नीति का हवाला
ठाकरे ने केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें किसी राज्य में हिंदी को अनिवार्य करने का निर्देश नहीं है। उन्होंने गुजरात का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाया गया है, तो फिर महाराष्ट्र में यह नीति क्यों लागू की जा रही है? उन्होंने सभी स्कूलों के प्राचार्यों से अपील की है कि वे इस निर्णय का खुलकर विरोध करें और मराठी भाषा की गरिमा को बनाए रखने के लिए आगे आएं।