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राजनीति के दिग्गज सत्यपाल मलिक का निधन, 79 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस

सत्यपाल मलिक, जो जाट राजनीति के एक प्रमुख चेहरा थे, का मंगलवार को निधन हो गया। 79 वर्षीय नेता पिछले कुछ हफ्तों से गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत छात्र राजनीति से की और कई दलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके कार्यकाल में जम्मू-कश्मीर में कई ऐतिहासिक घटनाएं हुईं। जानें उनके जीवन और योगदान के बारे में अधिक जानकारी।
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सत्यपाल मलिक का निधन

सत्यपाल मलिक, जो राजनीति के कई महत्वपूर्ण क्षणों का हिस्सा रहे, का मंगलवार को निधन हो गया। 79 वर्षीय नेता पिछले कुछ हफ्तों से दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में गंभीर रूप से बीमार थे और उन्होंने दोपहर 1:12 बजे अंतिम सांस ली। उनके निधन की पुष्टि अस्पताल और आधिकारिक सोशल मीडिया के माध्यम से की गई।


मलिक की स्वास्थ्य स्थिति लंबे समय से नाजुक थी। उन्हें 11 मई को मूत्र मार्ग संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती किया गया था, जहां उन्हें निमोनिया, मल्टी ऑर्गन फेलियर और सेप्टिक शॉक जैसी गंभीर जटिलताओं का सामना करना पड़ा। डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें पहले से ही डायबिटीज, हाइपरटेंशन, क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ और स्लीप एपनिया जैसी कई पुरानी बीमारियाँ थीं, जिनके कारण उनका इलाज सफल नहीं हो सका।


जाट राजनीति में प्रभावशाली नेता

सत्यपाल मलिक, जो उत्तर प्रदेश के बागपत जिले से आते थे, जाट समुदाय की राजनीति में एक स्वतंत्र विचार वाले नेता के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत छात्र राजनीति से की और 1974 में विधायक बने। चौधरी चरण सिंह की विचारधारा से प्रेरित होकर उन्होंने भारतीय क्रांति दल से राजनीति में कदम रखा।


मलिक का राजनीतिक सफर किसी एक पार्टी तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने कांग्रेस, लोकदल, समाजवादी पार्टी और जनता दल जैसे विभिन्न दलों के साथ काम किया। वे राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदनों में प्रतिनिधित्व कर चुके थे और हमेशा अपनी बेबाक राय के लिए जाने जाते थे।


संवैधानिक पदों पर महत्वपूर्ण भूमिका

2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया, और बाद में ओडिशा का अतिरिक्त प्रभार भी मिला। लेकिन उनका सबसे चर्चित कार्यकाल जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में रहा, जहां 2018 से 2019 के बीच कई ऐतिहासिक घटनाएं हुईं, जिनमें अनुच्छेद 370 का हटाया जाना और राज्य का पुनर्गठन शामिल है।


पुलवामा हमले के समय भी वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे, जब देश ने 40 सीआरपीएफ जवानों की शहादत का दुख झेला। इसके बाद उन्होंने गोवा और मेघालय के राज्यपाल के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं।