राजनीतिक चंदे का असमान खेल: कांग्रेस की चुनौतियाँ
राजनीति में चंदे की भूमिका
यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है कि जब किसी पार्टी के पास सत्ता नहीं होती, तो वह राजनीति कैसे कर सकती है और चुनाव कैसे लड़ेगी? पहले, सत्ता में होना चुनावी हार का कारण माना जाता था, लेकिन अब यह जीत की गारंटी बनता जा रहा है। एंटी इन्कम्बैंसी से प्रो इन्कम्बैंसी की यह स्थिति एक गहन विश्लेषण की मांग करती है। वर्तमान में, पार्टियों के लिए चुनावी मैदान में असमानता एक गंभीर मुद्दा बन गया है। हाल ही में कई मीडिया समूहों ने राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का विवरण साझा किया है, जिससे कांग्रेस के लिए चिंताजनक तस्वीर उभरती है। कांग्रेस के अलावा, अन्य पार्टियाँ भी मुश्किल में हैं, खासकर जिनकी किसी राज्य में सरकार नहीं है।
चंदे का वितरण
राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की कहानी दिलचस्प है। यह कहा जा सकता है कि अधिकांश चंदा सत्तारूढ़ दल को मिलता है, जबकि विपक्षी पार्टियाँ इससे वंचित रहती हैं। हालांकि, यह पूरी तस्वीर नहीं है। केंद्र की राजनीति में, भाजपा के खिलाफ लड़ने वाली कई बड़ी पार्टियाँ किसी न किसी राज्य में सत्ता में हैं या फिर सत्ता में लौटने की संभावना रखती हैं। इन पार्टियों को भी पर्याप्त चंदा मिलता है। उदाहरण के लिए, अगर भाजपा को 6,088 करोड़ रुपए मिलते हैं, तो डीएमके को 365 करोड़ रुपए मिलते हैं।
चंदे के स्रोत
हाल के वर्षों में, राजनीतिक चंदे का मुख्य स्रोत इलेक्टोरल बॉन्ड था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया है। अब पार्टियाँ इलेक्टोरल ट्रस्ट के माध्यम से चंदा प्राप्त कर रही हैं। कंपनियाँ सीधे भी चंदा देती हैं, और निजी दानदाताओं से भी चंदा मिलता है। यह ध्यान देने योग्य है कि कई प्रादेशिक पार्टियों को नकद चंदा अधिक मिलता है।
कांग्रेस की स्थिति
कांग्रेस को वित्त वर्ष 2024-25 में 522 करोड़ रुपए का चंदा मिला है, जो भाजपा के 6,088 करोड़ के मुकाबले बहुत कम है। यदि कांग्रेस के पास राज्यों में सरकार नहीं होती, तो यह पार्टी आर्थिक रूप से और भी कमजोर हो जाएगी। यह दर्शाता है कि राजनीतिक चंदा लोकतांत्रिक नहीं है, क्योंकि चंदा देने वाले केवल सत्ता से जुड़े होते हैं।
नैरेटिव और मीडिया का प्रभाव
चुनाव लड़ने के लिए धन और नैरेटिव की शक्ति आवश्यक होती है। नैरेटिव का निर्माण मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से होता है, जो अक्सर चुनिंदा कॉरपोरेट घरानों के नियंत्रण में होता है। यह स्थिति कांग्रेस के लिए चुनावी लड़ाई को और भी कठिन बना देती है, क्योंकि उसे न तो चंदा मिलता है और न ही मीडिया का समर्थन।
