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राजनीतिक संबंधों का पूंजीपतियों पर प्रभाव: राहुल गांधी की आलोचना

बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रचार करते हुए पूंजीपतियों के साथ संबंधों पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने अंबानी और अडानी का नाम लेते हुए आरोप लगाया कि ये उद्योगपति सरकार से अधिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि कांग्रेस के कई नेता भी पूंजीपतियों के साथ घनिष्ठ संबंध रखते थे। इस लेख में राजनीतिक संबंधों का गहरा इतिहास और उनके प्रभाव पर चर्चा की गई है।
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राजनीतिक संबंधों का पूंजीपतियों पर प्रभाव: राहुल गांधी की आलोचना

राजनीतिक समीकरण और पूंजीपतियों के रिश्ते


आलोक मेहता | बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रचार करते हुए पूंजीपतियों के साथ संबंधों पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने विशेष रूप से अंबानी और अडानी का नाम लिए बिना अन्य पूंजीपतियों पर भी आरोप लगाए हैं कि वे सरकार से अधिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं।


हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि कांग्रेस के कई शीर्ष नेता भी पूंजीपतियों के साथ घनिष्ठ संबंध रखते थे, और उनके शासन के दौरान बड़े उद्योगपतियों को कई लाभ मिले। ऐसा प्रतीत होता है कि राहुल गांधी 60-70 के दशक की वामपंथी राजनीति की शैली में जनता को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं।


भारत में आर्थिक उदारवाद की शुरुआत 1991 में कांग्रेस सरकार के दौरान हुई थी, जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे और मनमोहन सिंह वित्त मंत्री।


राजनीतिक संबंधों का पूंजीपतियों पर प्रभाव: राहुल गांधी की आलोचना
आलोक मेहता, संपादकीय निदेशक।


अंबानी और अडानी समूह ने पिछले तीन दशकों में तेजी से विकास किया है। राहुल गांधी, जो खुद को युवा नेता मानते हैं, शायद भारत की राजनीतिक और आर्थिक पृष्ठभूमि को पूरी तरह से नहीं समझते। आम जनता भी अंबानी और अडानी जैसे उद्योगपतियों को जानती है और कई लोगों ने इन कंपनियों के शेयर भी खरीदे हैं।


बिरला समूह का उदाहरण लेते हुए, यह स्पष्ट है कि उन्होंने कांग्रेस पार्टी को चुनावी चंदा दिया और राज्य सभा में सांसद भी बने। इसके अलावा, अंबानी समूह को भी कांग्रेस के शासन में कई विशेष लाभ मिले।


राहुल गांधी को यह समझना चाहिए कि अडानी समूह को 1994 में कांडला पोर्ट का ठेका दिया गया था, जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। इसी तरह, राजस्थान में भी अडानी को सौर ऊर्जा के प्रोजेक्ट का काम मिला।


इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि राजनीतिक और व्यावसायिक संबंधों का इतिहास बहुत गहरा है। राहुल गांधी को यह याद रखना चाहिए कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच भी सामान्य संबंध बने रहते हैं।