राहुल गांधी: विपक्ष की आवाज और मोदी सरकार का चुनौतीपूर्ण सामना
राहुल गांधी का प्रभाव
बिहार के चुनाव परिणाम चाहे जो भी हों, लेकिन राहुल गांधी की आवाज़ निश्चित रूप से मजबूत होगी। वह अब एक ऐसा चेहरा बन चुके हैं, जो न केवल साहस का प्रतीक है, बल्कि विपक्ष की पहचान भी हैं। अगर राहुल गांधी नहीं होते, तो तेजस्वी, अखिलेश या कांग्रेस के अन्य नेता मोदी सरकार को कैसे चुनौती देते? प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करने वाला कोई नहीं होता। पिछले ग्यारह वर्षों में, अरविंद केजरीवाल से लेकर ममता बनर्जी, नवीन पटनायक और वाम मोर्चे के नेताओं ने मोदी सरकार के खिलाफ क्या किया है? मीडिया, जो पहले वाजपेयी और मनमोहन की सरकारों के खिलाफ मुखर था, अब मोदी राज में चुप्पी साधे हुए है।
मोदी सरकार ने साबित किया है कि हिंदुओं से ज्यादा भयभीत और भूखा जनमानस कहीं नहीं है। लोग छोटे-छोटे लाभ के लिए अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को बेचने को तैयार हैं। पढ़े-लिखे लोग भी सरकारी डर के आगे झुकते हैं।
इस सबके बीच, राहुल गांधी एक मजबूत आवाज बने हुए हैं। उन्होंने कभी समझौता नहीं किया, न ही झुके या डरे। क्या यह 140 करोड़ लोगों के बीच एक अनोखी बात नहीं है?
मैंने पहले भी लिखा था कि वाजपेयी का 'शाइनिंग इंडिया' सोनिया गांधी के लिए एक अवसर था। अब राहुल गांधी भी इसी तरह उभरेंगे। वाजपेयी के समय में कई नेता थे जिन्होंने उन्हें बढ़ावा दिया, लेकिन अब मोदी के समय में भी वही स्थिति है।
मोदी-शाह की सरकार ने भी वही रणनीतियाँ अपनाई हैं जो ईस्ट इंडिया कंपनी ने की थीं। 2014 में सोशल मीडिया और अन्य नए औजारों का उपयोग कर मोदी ने अपनी छवि बनाई।
फिर भी, राहुल गांधी की आवाज़ विरोध की एकमात्र आवाज बनी हुई है।
पिछले ग्यारह वर्षों में उनकी आवाज़ को दबाने के लिए हर संभव प्रयास किए गए। उन्हें 'पप्पू' कहा गया, कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिशें हुईं, और उन पर कई आरोप लगाए गए।
फिर भी, राहुल गांधी ने कभी हार नहीं मानी। यह सोचने वाली बात है कि जब आम लोग डरते हैं, तब राहुल गांधी का निर्भीक विरोध क्या दर्शाता है?
राहुल गांधी ने अडानी-अंबानी और भ्रष्टाचार पर खुलकर बात की है। उन्होंने उन सभी लोगों की आवाज़ उठाई है जो मीडिया और राजनीति में अनसुने हैं।
इस सप्ताह चुनाव आयोग पर उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद, लोगों में यह चर्चा थी कि वह सही बोलते हैं और एक दिन सच सामने आएगा!
