रूस और चीन की चुप्पी: ईरान-इजराइल संघर्ष में महाशक्तियों की भूमिका

रूस और चीन का ईरान-इजराइल संघर्ष पर रुख
रूस और चीन का ईरान-इजराइल संघर्ष पर रुख: ईरान और इजराइल के बीच चल रहे युद्ध पर वैश्विक महाशक्तियों की नजरें टिकी हुई हैं। अमेरिका ने इजराइल का खुलकर समर्थन किया है, उसे हथियार और अन्य संसाधन प्रदान कर रहा है। वहीं, रूस और चीन ने इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी है।
दोनों देशों ने केवल यह कहा है कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है और इसे रोकने की आवश्यकता है। अब सवाल यह उठता है कि व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग इस स्थिति पर चुप क्यों हैं? क्या इसके पीछे कोई गुप्त रणनीति है या वे केवल अपने लाभ को देख रहे हैं?
रूस का ईरान के प्रति चुप्पी का कारण
रूस खुलकर नहीं दे रहा है ईरान का साथ!
रूस की ओर से अभी तक कोई ठोस बयान नहीं आया है। क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा है कि स्थिति तेजी से बिगड़ रही है और इसके गंभीर परिणाम पूरे मध्य पूर्व पर पड़ सकते हैं। राष्ट्रपति पुतिन ने इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू और ईरानी राष्ट्रपति मसूद पजेशकियन से फोन पर बात की, लेकिन कोई स्पष्ट मध्यस्थता का प्रस्ताव नहीं दिया गया।
रूस की चुप्पी आश्चर्यजनक है, क्योंकि ईरान उसका करीबी रणनीतिक सहयोगी रहा है। यूक्रेन युद्ध के दौरान, ईरान ने रूस को ड्रोन प्रदान किए थे और दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं। इसके बावजूद, रूस ने इजराइल की सैन्य कार्रवाई की निंदा नहीं की है।
रूस की चुप्पी के पीछे के कारण
रूस के शांत रहने के पीछे की वजह
एक रिपोर्ट के अनुसार, रूस इस समय यूक्रेन युद्ध में उलझा हुआ है और उसे पश्चिमी देशों से कड़े आर्थिक और कूटनीतिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है। यदि वह ईरान के पक्ष में खुलकर खड़ा होता है, तो इससे पश्चिमी देश और नाराज हो सकते हैं। रूस नहीं चाहता कि उसके खिलाफ कोई नया मोर्चा खुले।
दूसरा महत्वपूर्ण कारण यह है कि यदि ईरान का युद्ध लंबा चलता है, तो अमेरिका और यूरोपीय देशों का ध्यान इजराइल-ईरान संघर्ष पर चला जाएगा, जिससे रूस को यूक्रेन में बढ़त मिल सकती है। इसके अलावा, इस तनाव से तेल की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे रूस को आर्थिक लाभ होगा।
चीन की चुप्पी का कारण
चीन की खामोशी के पीछे की वजह
चीन ने संयम बरतने की अपील की है, लेकिन न तो इजराइल को हमलावर कहा है और न ही ईरान को निर्दोष बताया है। चीन ने संयुक्त राष्ट्र में भी किसी एक पक्ष का समर्थन नहीं किया है। वह शांति का समर्थक दिखना चाहता है, लेकिन अपने आर्थिक हितों को जोखिम में नहीं डालना चाहता।
चीन के लिए सबसे बड़ा मुद्दा तेल और व्यापार है। ईरान और खाड़ी देशों के साथ उसका बड़ा व्यापार है, और वह क्षेत्र में अस्थिरता नहीं चाहता। जिनपिंग को डर है कि किसी पक्ष का समर्थन करने से उसके आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचेगा।