Newzfatafatlogo

रूस-भारत संबंधों में नया मोड़: क्या भारत को अपनी नीति में बदलाव करना होगा?

रूस ने भारत के साथ अपने संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ लिया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत को अब रूस के समर्थन को स्वाभाविक नहीं मानना चाहिए। सर्गेई लावरोव के हालिया बयानों ने इस स्थिति को और स्पष्ट किया है। क्या भारत को अपनी विदेश नीति में बदलाव करने की आवश्यकता है? जानें इस लेख में रूस-भारत संबंधों की नई चुनौतियों और अवसरों के बारे में।
 | 
रूस-भारत संबंधों में नया मोड़: क्या भारत को अपनी नीति में बदलाव करना होगा?

रूस की नई रणनीति

रूस ने अपने रुख को स्पष्ट कर दिया है और अब उसने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत के साथ उसका संबंध बना रहे। अब यह भारत पर निर्भर करता है कि वह इस स्थिति का कैसे सामना करता है।


रूस की भारत के प्रति नीति अब अधिक स्पष्ट होती जा रही है। इसका पहला संकेत यह है कि भारत अब रूस के समर्थन को अपने लिए स्वाभाविक मानकर नहीं चल सकता। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान रूस ने अपने व्यवहार से यह बात स्पष्ट कर दी थी। इसके बाद आए बयानों और व्यवहार से यह स्पष्ट हुआ है कि भारत जिस देश को अलग-थलग करना चाहता है, उसमें सहयोग के लिए रूस तैयार नहीं है। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने एक साक्षात्कार में कहा कि पश्चिमी देशों ने भारत को अपनी चीन विरोधी रणनीति में खींचने की कोशिश की है। इसके बाद लावरोव ने यह भी कहा कि रूस-भारत-चीन (आरआईसी) समूह को फिर से सक्रिय करने का समय आ गया है। यह समूह 1990 के दशक में तत्कालीन रूसी प्रधानमंत्री येवगेनी प्रीमाकोव की पहल पर स्थापित किया गया था।


उस समय रूस ने विकासशील देशों की आवाज उठाने के लिए एक मंच बनाने का प्रयास किया था। लगभग 20 वर्षों तक इस समूह की बैठकें और संवाद होते रहे, लेकिन गलवान घाटी की घटना के बाद यह प्रक्रिया रुक गई। अब रूस इसे फिर से सक्रिय करना चाहता है। हालांकि, चीन के पाकिस्तान के साथ बढ़ते संबंधों और भारत की पहले से मौजूद चिंताओं को दूर करने के लिए लावरोव के पास कोई स्पष्ट समाधान नहीं है।


इसके बजाय, संकेत यह है कि रूस का उद्देश्य भारत को उसकी और चीन की वैश्विक रणनीति का हिस्सा बनाना है। यह रणनीति अमेरिकी नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था के खिलाफ जाती है। भारत के नीति निर्माताओं के लिए यह गंभीर विचार का विषय है कि क्या वे विदेश नीति में इस तरह के बुनियादी बदलाव को देश के हित में मानते हैं। एक आकलन यह है कि रूस ने अपना पक्ष तय कर लिया है और अब उसने अपना अंतिम दांव खेला है, ताकि नई परिस्थितियों में भी भारत के साथ उसका पुराना संबंध बना रहे। गेंद अब भारत के पाले में है।