लालू और राहुल का राजनीतिक संघर्ष: बिहार में सत्ता की जंग

राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं
आलोक मेहता | राजद के नेता लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी का एक ही उद्देश्य है: रायसीना हिल्स पर कब्जा करना। लालू की आत्मकथा 'गोपालगंज से रायसीना' में इस बात का संकेत मिलता है। इस पुस्तक की प्रस्तावना सोनिया गांधी ने 13 सितंबर 2018 को लिखी थी।

शायद उस समय दोनों को यह गलतफहमी थी कि 2019 के चुनाव में मोदी को बहुमत नहीं मिलेगा और राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनेगी। लेकिन यह सपना हकीकत में नहीं बदल सका। लालू ने अपनी आत्मकथा में अपने बेटे तेजस्वी यादव को उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया था।
अब बिहार विधानसभा चुनाव से पहले तेजस्वी ने राहुल को प्रधानमंत्री बनाने और खुद मुख्यमंत्री बनने का सपना देखा है। दोनों नेता और उनके सहयोगी चुनावी एजेंसियों पर हमले कर रहे हैं, ताकि जनता को भ्रमित किया जा सके।
1990 और 1995 के चुनावों में कांग्रेस की दुर्दशा के कारण लालू को बहुमत मिला था। तब से उनकी महत्वाकांक्षा बढ़ गई थी। लालू ने अपनी जाति और मुस्लिम वोटों की ताकत का प्रदर्शन करते हुए कहा था कि कोई भी उन्हें दिल्ली पर कब्जा करने से नहीं रोक सकता।
कभी राजीव गांधी के कैबिनेट सचिव रहे टीएन सेशन ने चुनावों में धांधली रोकने के लिए कड़े कदम उठाए थे। इससे लालू बौखला गए थे और उन्होंने सेशन को धमकी दी थी।
लालू ने 2008 में एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने देवेगौड़ा से कहा था कि वे कैसे काम करेंगे। इस बातचीत के बाद देवेगौड़ा को हटना पड़ा और गुजराल प्रधानमंत्री बने।
राहुल और तेजस्वी अब जांच एजेंसियों पर दबाव बनाने के लिए अभियान चला रहे हैं। बिहार में स्टालिन को दिखाकर वे जनता को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।
कांग्रेस के पुराने नेता राहुल के सहयोगियों के हाथों में निर्णय लेने की शक्ति है, जिससे वे परेशान हैं। बिहार में अपराधियों की गतिविधियों के कारण चिंता बढ़ रही है।
प्रधानमंत्री मोदी की माताजी को गालियां दी जा रही हैं, जिससे भावनात्मक मुद्दे गर्म हो रहे हैं। तेजस्वी की पत्नी और सोनिया गांधी के संबंधों पर भी चर्चा हो रही है।
बिहार की राजनीति को समझना आसान नहीं है। लालू-राहुल का अभियान जनता को प्रभावित नहीं कर रहा है। हाल ही में राजग-भाजपा का बिहार बंद सफल रहा, जो इस बात का संकेत है कि लोग उनकी बातों में नहीं आ रहे हैं।